Wednesday 7 May 2014

धरती से सोना उगाने वाले भाई रे


इस गीत के रचनाकार है -ब्रजमोहन जी
धुन व गीतकार हैं - देवेन्द्र जी ( "हम किसान " संगठन से,झिरी (राजस्थान )

धरती से सोना उगाने वाले भाई रे
माटी से हीरा बनाने वाले भाई रे
अपना पसीना बहाने वाले भाई रे
उठ तेरी मेहनत को लूटे कसाई रे...

मिल-कोठी-कारें ये सड़कें ये इंजन
इन सब में तेरी ही मेहनत की धड़कन
तेरे ही हाथों ने दुनिया बनाई
तूने ही भरपेट रोटी न खाई
हँसी तेरे होठों की किसने चुराई रे...

खेत खलिहानों में,मिल कारखानों में ,
कोयला खदानों में सोने कि खानों में,
बहता है तेरा ही खून पसीना,
जालिम लुटेरों का पत्थर का सीना,
सेठों के है पेटों में तेरी कमाई रे.......


धरती भी तेरी ये अम्बर भी तेरा
तुझ को ही लाना है अपना सवेरा
तू ही अँधेरों में सूरज है भाई!
तू ही लड़ेगा सुबह की लड़ाई
तभी सारी दुनिया ये लेगी अंगड़ाई रे...

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