Sunday 6 July 2014

क्षेत्रीय युवा समाज साधना शिविर का प्रतिवेदन

स्थान: समन्वय आश्रम, बोधगया, बिहार                                   दिनांक: 13-15 जून’ 2014

गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की पहल से क्षेत्रीय युवा समाज साधना शिविर 13-15 जून को समन्वय आश्रम बोधगया बिहार में सम्पन्न हुई। इस शिविर में कुल 5 राज्य के युवा शामिल हुए, जिनमें बिहार, बंगाल, झाड़खण्ड, मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश शामिल है। शिविर में कुल 112 शिविरार्थियों की भागीदारी रही हंै। शिविरार्थियों को प्रशिक्षण देने के लिए कई राज्यों से प्रशिक्षक उपस्थित हुए, जिनमें ज्ञानेन्द्र कुमार (महाराष्ट्र), च. अ. प्रियदर्शी (बिहार), अरविंद अंजुम, मंथन और दिलीप कुमार (झाड़खण्ड), मनीषा बनर्जी (प.बंगाल)  शामिल हैं। 
शिविर का पहला दिन (13 जून’ 2014 को 11ः00 बजे से प्रारंभ) पूर्व निर्धारित कार्यक्रम सूची अनुसार ज्ञानेन्द्र कुमार द्वारा उद्घाटन किया गया। कुमार दिलीप द्वारा विभिन्न राज्यों से उपस्थित शिविरार्थियों एवं प्रशिक्षकों का स्वागत किया गया। संचालन सुशान्त ने किया। दीपक के क्रान्ति गीत (हम तो लड़ेगें हम न डरेंगे......।)। कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रत्येक शिविरार्थियों ने अपना-अपना परिचय दिया। सभी शिविरार्थियों को 11 समूहों में बंटा गया, सभी समूह में 10-10 प्रतिभागी शामिल हुए। समूह संख्या 1. समूह का नाम- उज्वल, समूह नायिका- पिंकी कुमारी, समूह संख्या 2. समूह नाम- गांधी, नायक- सुमित कुमार, समूह संख्या 3. साधना, नायिका- श्वेता शशी, समूह संख्या 4. समता समूह, नायिका- सोनाली प्रभा, समूह संख्या 5. भगत सिंह, नायिका- मंजू कुमारी, समूह संख्या 6. युवा, नायिका- पूजा कुमारी, समूह संख्या 7. समय सत्य, नायक- सुशान्त, समूह संख्या 8. सत्यदल, नायक- राजकुमार, समूह संख्या 9. संघर्ष, नायक- कमल, समूह संख्या 10. सद्भवना, नायक- दीपक और समूह संख्या 11. क्रान्ति, नायक- दुलार कुमार। 
दूसरा सत्र कारू जी के क्रान्ति गीत के साथ प्रारंभ किया गया। 
कृष्ण नन्दन ने कहा देव, मानव और दानव प्रवृति के लोग इस पृथ्वी पर है। इसकी व्यख्या भी किया- हम जो काम करते हैं और लेते कम हैं उसे देव प्रवृति कहा जाता है। जो समाज से ले और उसे समर्पित करते हैं उसे मानव प्रवृति कहते हैं। दानव प्रवृति उसे कहते हैं जो समाज से केवल लेते हैं। 
राष्ट्र निर्माण में चुनौतियां विषय पर बताते हुए ज्ञानेन्द्र कुमार ने अपना वक्तव्य रखा। स्वतंत्रता संग्राम का एक लम्बा दौर चला जिससे कई सारे लोग अमानवीय शक्तियों के खिलाफ सामने आया। जसकी संख्या आज घटती आ रही है। प्रकृति को नष्ट करने के चुनौती देश के सामने है। विज्ञान के साथ-साथ अन्धविश्वास भी बढ़ रही है। मूल्य परिवर्तन होने के कारण नीति परिवर्तन हो रहा है। 
इसके बाद सवाल जवाब का सत्र चला जिसमे:-ं 
सुरजीत - कि लोगों के अन्दर जो डर भरा हुआ है हम इससे कैसे मुक्त हो और इसके लिए क्या करें? 
दीपक - राष्ट्र का जरूरत किसे है?
मंजू कुमारी - माता-पिता का बात सुनना चाहिए और समय पर काम करना चाहिए। क्या इससे राष्ट्र निर्माण होगा?
रतनेश कूमार - क्या जाति हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौतियां है?
जवाब में राजेश - हमें ही राष्ट्र निर्माण के लिए कुछ करना होगा। 
मनोज निराला - पूंजीवाद समाज का सबसे बड़ा खतरा है, इसे रोकना होगा। 
अमरजीत - बदलाव के लिए सबसे पहले अपने घर से प्रारंभ करना होगा।  
कौशलेन्द्र - राष्ट्र किसी एक के लिए नहीं सभी के लिए है। मिलकर बनाना होगा। 
उपरोक्त प्रशनों के जवाब में ज्ञानेन्द्र कुमार ने कहा जो अधिकारों से वंचित है उसे राष्ट्र की जरूरत है। और जो अधिक से अधिक पुंजी संचय करने में जुटे हैं उससे समानता करने के लिए राष्ट्र निर्माण का जरूरत है। ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना होगा जिसमें सभी जाति धर्म समान होगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ पहला दिन का कार्यक्रम समाप्त किया गया। 
दूसरा दिन का पहला सत्र में समाचार लेखन विषय पर सभी शिविरार्थियों को लिखने के लिए दिया गया। लिखने के बाद संचालन समिति का जमा दिया गया। लेखन में कमी को दर्शाते हुए अरविंद अंजुम ने कहा कि हर विशेष बात को लिखना जरूरी है। समझ कर लिखना और भी जरूरी है। शीर्षक उसके महत्वपूर्ण होता है। सार लिखना आना चाहिए। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जिससे समाचार का तालमेल हो। लेखन ऐसा हो जिससे लोगों को पढ़ने में रुचि आये। अच्छा लिखने के लिए लगातार अभ्यास जरूरी है। 
दूसरा सत्र का विषय स्त्री-पुरुष समता:-
मनीषा बनर्जी ने कहा कि औरत हर तरफ से खींची जाती है। सामाजिक जिम्मेदारी सबसे ज्यादा उसी की है। मगर उसे ही इज्जत नहीं मिलती है। मैं कुछ प्रश्न आप लोगों से पुछती हुं, आप लोग जवाब दीजिएगा। 1. क्या महिलाएं पुरुष से कमजोर है? 2. क्या महिलाएं पुरुष से दिमाग के स्तर पर कमजोर है? 3. क्या पुरुष महिलाओं से ज्यादा काम करते हैं? 4. क्या महिलाओं के उपर हिंसा की वजह उनके कपड़े हैं? 5. महिलाएं देवी या मां है? 6. क्या लड़कियां विज्ञान में कमजोर है? 7. क्या पुरुषों का घर में काम कारना आपको मंजूर है? 8. क्या महिलाएं सजने की सामग्री ज्यादा उपयोग करती है? 9. क्या पुरुष महिलाओं के तुलना में ज्यादा उत्पादक होते हैं? 
इन प्रश्नों को लेकर सभी प्रतिभगियों में वाद - प्रतिवाद चला। फिर समूह चर्चा चला। सभी बातों को समेटते हुए मनीषा ने कहा कि औरत की जंग जन्म से ही शुरू हो जाती है। औरत की लड़ाई सबसे पहले अपनो से ही है। औरत को आत्मनिर्भर होना और पहचान बनाना जरूरी है। साथ में शिक्षा, दहेज और सामाजिक अत्याचारों को नाटक के रूप दिखाया गया।  
अन्त में सभी ने संकल्प लिया कि शादी में दहेज लेना-देना बन्द करेंगे। ऐसे आयोजन में जाना भी बन्द करेंगे। 
तीसरे सत्र में बनारसी आलम के नेतृत्व में सांस्कृतिक कार्यक्रम तौर पर पुतुल नाच (कठपुतली) दिखया गया है। साथ में सभी प्रतिभागियों ने गीत, चुटकुला, कविता, रचना और नाच आदि प्रस्तुत किये। 
तीसरे दिन के पहला सत्र में समता की ओर विषय में मंथन ने अपना विचार रखा। समतामूलक समाज निर्माण के लिए हमेशा अपने आप को सुधारने की कोशिश करते रहना है। जितना हो सके एक अच्छा इंसान बनकर रहना होगा। समाज के हर छोटी बातों को ध्यान देना जरूरी है। उसके बाद सभी प्रतिभागियों को ‘‘आप लोग इस शिविर में क्यों आये हैं?’’ इस प्रश्न पर लिखने दिया। सभी प्रतिभागियों ने लिखकर जमा कर दिया। 
दूसरा सत्र समापन सत्र इस सत्र में उर्मिला ने कहा कि इस तरुण उम्र में अगर सोच प्रगतिशील बने तो उम्मीद है कि समाज आने वाले भविष्य में सुधरेगा। अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। अपने स्तर से बदलना होगा। 
अरविंद अंजुम ने कहा कि इंसान बराबर होते हैं। इंसान के हक की लड़ाई बुद्ध, बोसाल और महावीर के समय से चली आ रही है। हमारे यहां भेद-भाव हर स्तर पर मौजूद है। हिन्दुस्तान में गंदगी को साफ करना ही गंदा कहा जाता है। कार्य के हिसाब से इंसानों को बांट दिया गया है। ऐसी चीजें समाप्त हो जाती है जो प्रगतिशील नहीं है। आज के समय राजनीतिक के लोग केवल धर्म को स्थपित कर रहे हैं। आम इंसान अपना गला अपने घोट रहा हैं। हमें विषमता के प्रतिकों का नाश करना होगा। विश्व के प्रति समता का प्रोपागांडा ही सब कुछ है। सभी प्रतिभागियों को ‘‘शिविर में क्या सीखा? और यहां से जाने के बाद अपनी जिन्दगी में क्या परिवर्तन करेंगे?’’
च. अ. प्रियदर्शी ने कहा कि हमारे शरीर के उंगली अलग-अलग लम्बाई की है। इस उदाहरण को देते हुए, मनुष्य के समान अधिकार के बारे में बताएं। 1974 आंदोलन के बारे में बताये और बोधगया आंदोलन के अनुभव को सभी के सामने रखा। अंन में कहा कि हमें समता की लड़ाई को आसान बनाना होगा। 
श्रद्धा मांझी और कैलाश भारती ने अपने वक्तव्य में कहा कि आंदोलन ने हमें जीना सिखाया और एक समान तरिके से लोगों में अपनापन का संचार किया।
बनारसी आलम हम लोग कभी भी गुलामी नहीं सहेंगे। गुलामी तीन प्रकार की होती है - राजनीतिक, धार्मिक और पूंजीवादी व्यवस्था। सारे भेद-भाव दूर करके हमें एक सुन्दर समाज बनाना है।
इसके बाद मंथन ने शिविर का समापन किया और कहा कि हमें अपना लेखन में परिपक्वता लाने की जरूरत है। यहां से जो कुछ भी सीखें हैं उसमें से एक दो बातें अपने जीवन में उतारें। अशोक मानव ने सभी को धन्यवाद दिया। अन्त में क्रान्ति गीत एवं नारा के साथ शिविर की समाप्ति की घोषणा की। 
शिविर में सीताराम, खेमराज, शिवलाला सोलंकी (मध्य प्रदेश), बरनाली बोसु, शुभद्रा चटर्जी, सुरजीत, सुशान्त मंडल, रूकसार खतुन, मेघना बनर्जी, एस.के. हाफीजुर और मनीषा बनर्जी (प. बंगाल), वारंग्ये वरुण, सुशान्त, ऋषभ और कौशलेन्द्र प्रताप सिंह (उत्तर प्रदेश), रूम्पा कुमारी, झुमुर मांनिन्द, अंतश पलास, निर्मल महतो, दीपक, विश्वनाथ, प्रहलाद चन्द्र, कमल, कैलाश, गुरू चरण, कार्तिक टाना भगत, सूरज कुमार भगत, कृष्णा टाना भगत, सोनु कुमार, श्यामली सुमन, सोनाली प्रभा, श्वेता शशि, बीर सिंह, राजेश कुमार महतो, दिलीप कुमार, मंथन, अरविंद अंजुम और कुमार दिलीप (झाड़खण्ड), ज्ञानेन्द्र कुमार (महाराष्ट्र), रितेश कुमार गोड़, जयराम कुमार, परशुराम, विवेक कुमार, गौतम कुमार, अजय कुमार, सुशिल कुमार, पूजा कुमारी, सरजु कुमारी, कल्याणी कुमारी, अनिता कुमारी, सावित्री कुमारी, दीपक कुमार, बिरेन्द्र कुमार, विपीन कुमार, मदन कुमार, दुलार कुमार, राजकुमार मंडल, राकेश कुमार, मुकेश कुमार, पप्पू कुमार, विजय कुमार, रामबीर कुमार, राजबली कुमार, यसोदा कुमारी, गुडि़या कुमारी, काजल कुमारी, सुमित्रा कुमारी, भुवनेश्वर कुमार, आजाद अंसारी, शिवशंकर कुमार, राजेश कुमार, म. आजाद अंसारी, अमरजीत सिंह, माधुरी चैव्हान, मंजु कुमारी, मनोज कुमार, रेखा कुमारी,  जितेन्द्र, ममता कुमारी, नितु कुमारी, सोनी कुमारी, भुवनेश्वर कुमार, कमलेश कुमार, अनुप कुमार, प्रमिला कुमारी, किसन कुमार, अर्जुन कुमार, रामशिष्य कुमार, रंजीत कुमार, संगीता कुमारी, सुदेश्वर कुमार, पूजा कुमारी, पुष्पा कुमारी, साबीर अंसारी, कल्लु कुमार, नीतिश कुमार, पुनम कुमारी, सुनीता कुमारी, बेली कुमारी, गीता कुमारी, मरियम कुमारी, मनोरमा कुमारी, सविता कुमारी, सावित्री कुमारी, कजल कुमारी, पिंकी कुमारी, सोनम कुमारी, विक्की कुमार, सुजीत कुमार, बबलु कुमार, सुमित कुमार, दिनेश कुमार, कृति कुमारी, एम.डी. चान्द, टिकम सिंह, खेड़वार, रतनेश कुमार, शिवम कुमार, पूजा कुमारी, रामनरेश शर्मा, सोमर सिंह, दुलारी देवी, मीना देवी, कैलु मंडल, उर्मिला, शान्ति देवी, बाबुलाल अलबेला, कारू माझी, तेजन, वालो माझी, कामेश्वर, अशोक मानव, बनारसी आलम, प्यारे माझी, शिवरथ, रामस्वरू, शत्रुघन सिंह, भुन माझी, दोलती देवी, अर्जुन, कैलाश भारती, शारदा माझी और च.अ. प्रियदर्शी (बिहार) निम्न शामिल हुए।

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