Thursday 20 March 2014

47 वां बाल मेला और साहित्य सम्मेलन की रिपोर्ट


                         उदयन कल्याण केंद्र, ’तिलुटिया आश्रम’

19600 में आचार्य श्री शुद्रोतम ने विभिन्न संप्रदाय के 11 परिवारों की महिलाओं व् पुरुषों को लेकर 7 विभाग बनाकर एक का-अपरेटिव फार्म समूह की स्थापना की थी | सभी ने अपने-अपने धर्म को बचाकर रखने के साथ-साथ मानवीय एकता समूह का निर्माण करने का संकल्प लिया था। सभी लोग,सभी धर्मों का पालन करते थे कभी कोई किसी भी धर्म के विरूद्ध नहीं रहते थे। इस समूह में सात विभाग खोले  गए जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, दूग्ध उत्पादन, पक्षि पालन, वाणिज्य और कला केंद्र विभाग शामिल किये गए थे| प्रत्येक विभाग में विभागिय विशेषज्ञ व्यक्ति को सचिव बनाया गया था और शिक्षा विभाग को डिग्री मुक्त बनाया गया था।
      19670 में आचार्य श्री शुद्रोत्तम के अनुयायीयों ने उनके विचार और आदर्श को प्रचार-प्रसार करने के लिए एक सांस्कृतिक मंच का प्रस्ताव तैयार किया था। जिसमें छोटे बच्चों को परिपक्क करने हेतु बाल मेला एवं बड़ों को संघर्षशील और सम्वेदनशील बनाने के लिए साहित्य सम्मेलन आयोजित करने की योजना तैयार की गयी थी। सम्मेलन का मूल सारतत्व विचार-विमर्श रखा गया था। इस सांस्कृतिक मंच को आचार्य श्री शुद्रोत्तम के अनुयायी व स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यिक व्यक्तित्व पुरनेन्दु प्रसाद भट्आचार्य ने शुरू किया था।
यह सांस्कृतिक मंच आज भी जीवित है। यहाँ हर वर्ष होली के त्योहार के अवसर पर कार्यक्रम किए जाते हैं। 2014 में 47वां बाल मेला और साहित्य सम्मेलन तिलुटीया आश्रम में सम्पन्न हुआ।
      कार्यक्रम के शुरूवात में वेद, बाईबल और कुरआन पाठ किया गया। विश्वनाथ मंडल ने वेद पाठ किया,सुभद्रा चटर्जी ने बाईबल पाठ किया और मौलाना रेजाउल इस्लाम ने कुरआन पाठ किया। इसके बाद बाल मेला के रूप में बाल प्रतियोगिता कार्यक्रम शुरू किया गया। प्रतियोगिता में चित्रांकन, रस्सी कूद, जिमनास्टिक,  गणित प्रतियोगिता, एक मिनट के प्रतियोगिता और अन्य कई प्रतियोगिताएं संपन्न हुई। इसके बाद होली के त्योहार के अवसर पर आश्रम के सभी सम्प्रदाय के लोग एवं आस-पास के अन्य लोगों ने रंग, अबीर और गुलाल से होली खेली।    
      पूरे कार्यक्रम में सभी जाति-धर्म के लोगों ने एक साथ भोजन पकाने का काम किया और एक साथ पंक्ति में बैठकर सभी ने भोजन किया। जिसमें कोई जाति-धर्म भेद का प्रश्न उत्पन्न नहीं हुआ।
      बाल मेला में बच्चों की कविता पाठ प्रतियोगिता, गीत प्रतियोगिता, नाच प्रतियोगिता एवं अन्य प्रतियोगिता भी हुई। और शाम के समय पुरस्कार वितरण किया गया।
      पुरस्कार वितरण के बाद नदिया-मुर्शीदाबाद से उपस्थित मेहेर चांद, दुलाली चित्रकार के नेतृत्व में कवि सम्मेलन किया गया। कवि सम्मेलन में गांव के अलावा आस पास के लोगों ने भी भाग लिया।
सम्मेलन के दूसरे दिन साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ। सर्व प्रथम सुभद्रा चटर्जी के क्रान्ति गीत के साथ सम्मेलन आरम्भ हुआ। सम्मलेन में मुख्य अतिथि के रूप में प. बंगाल ग्रामीण बैंक के अवकाश प्राप्त चेयरमेन माननीय कल्याण चटर्जी उपस्थित थे। आचार्य श्री शुद्रोत्तम के साथी एवं भाई अब्दुल हालिम के अध्यक्षता में साहित्य सम्मेलन सम्पन्न हुआ। संचालन रंजीत मुखोपाध्याय और विशिष्ट अतिथि के रूप में श्यामली सेन उपस्थित हुईं। विषय प्रवेश कराते हुए आचार्य श्री शुद्रोत्तम के पुत्र श्री विश्वजीत कहा कि आश्रम शुरू होने के समय में जो उद्देश्य था, उस उद्देश्य को स्थापित करने का काम हमें करना होगा। जयदेव वार्ता पत्रिका के सम्पादक सुभाष कविराज ने कहा कि गरीब बच्चों को मुफ्त किताब वितरण एवं वृद्धा को सुविधा देने हेतु वृद्धा आश्रम बनाया जाए। आचार्य श्री शुद्रोत्तम के साथी एवं आश्रम कमिटी के सदस्य श्री समरेन्द्र ने कहा कि आचार्य श्री शुद्रोत्तम के जीवन दर्शन को पालन करना हमारा सबसे बड़ा काम हो सकता है।
      सामाजिक कार्यकर्ता मनिषा बनर्जी ने कहा कि आश्रम के विचार को प्रचार-प्रसार करना जरूरी है। आहाशन कमाल, फजलुल हक, रीना कविराज आदि ने अपना विचार रखा और छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी के कुमार दिलीप ने अपने संघर्ष का अनुभव बताते हुए कार्य योजना बनाने हेतु प्रेरित किया। कौशिक ने कहा कि साम्य, प्रेम और मैत्री शब्द से मुझे आश्रम ने आकर्षित किया है। जो हम सब लोगों को पालन करने की जरूरत है। श्यामली सेन ने कहा कि आश्रम के काम में मुझे जब भी बुलाया जाए मैं जरूर आउंगी और यथा संभव सहयोग करूंगी, आश्रम को आगे बढ़ाने में मैं हमेशा तत्पर्य रहुंगी। कल्याण चटर्जी ने कहा कि मैं आश्रम को आगे बढ़ाने हेतु हमेशा साथ रहुंगा। कोलकाता में कोई भी कार्यक्रम होने पर मैं अधिक साथ दे सकता हूं। आश्रम को ट्रस्टी एक्ट के तहत रेजिस्ट्रेशन किया जाय इसका भी प्रस्ताव आया। अध्यक्षीय भाषण के तौर पर अब्दुल हालिम अपना विचार में श्री शुद्रोत्तम के जीवन दर्शन में प्रकाश डाले और हम सभी को उनके दिये मार्ग में चलने को कहा। अंत में श्री सुरजीत ने सभी अतिथि को धन्यवाद देते हुए सभा को समाप्त की घोषणा की।
      सांस्कृतिक कार्यक्रम के तौर पर आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। साथ-साथ में हंडी फोड़, चम्मच दौड़, तीरंदाजी और तेल युक्त बांस में चढ़ने का खेल प्रतियोगिता किया गया। विश्व भारती शांतिनिकेतन के विद्यार्थियों ने एक छोटा नाटक प्रस्तुत किया। जिस नाटक का नाम था ‘हृदयपुर कोतो दूर’ इसके बाद रविन्द्र नृत्य नाटिका चंडालिका कार्यक्रम हुआ। इसके बाद मनसा मंगल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
सभी कार्यक्रम के संचालन में श्री विश्वजीत ने मुख्य भूमिका निभाई।

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