Friday 28 February 2014

डिमना बांध के विस्थापितों एवं अन्य जन समस्याओं के संबंध में टाटा स्टील को पत्र





                                                       -----------  स्मार पत्र
                                                                                                                     दिनांक : 23.07.2013
 प्रति      
     प्रबंधक निदेशक
     टाटा स्टील
     पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर

विषय : डिमना बांध के विस्थापितों एवं अन्य जन समस्याओं के संबंध में

महाशय,

         डिमना बांध के विस्थापित विगत पांच बरसों से अपनी समस्याओं के समाधान के लिये प्रयासरत हैं। पहली बार जब हम 6 जनवरी 2009 को पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को अपनी मांगों या समस्याओं से अवगत कराया तो उन्होंने सहानुभूति का रूख प्रदर्शित करते हुये अनुमंडलाधिकारी, धालभुम को इसके समाधान हेतु अधिकृत किया। उस समय से लेकर आज तक प्रशासन की पहल से टाटा स्टील के अधिकारियों एवं विस्थापित प्रतिनिधियों के बीच 18 दौर की त्रिपक्षीय वार्ता हो चुकी है। इस क्रम में कर्इ समस्यायें पूरी तरह से स्पष्ट हो गर्इ और वह निष्कर्ष तक पहुंच गया है। अब इस पर सिर्फ निर्णय लेना बाकी रह गया है। लेकिन दु:ख की बात है कि लगभग एक वर्ष बीतने के बावजूद टाटा स्टील एवं प्रशासन की ओर से अपेक्षित गंभीरता नहीं रही है, जिसकी वजह से मामला टलता जा रहा है।   इस परिस्थिति में डिमना बांध के विस्थापित शांतिमय धरना कार्यक्रम के माध्यम से पुन: एक बार आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं ताकि समाधान की दिशा में हम गतिमान हो सकें।

हमारी मांगें
  
1. विस्थापितों ने प्रारंभ में ही दावा किया था कि टाटा स्टील अवैध रूप से किसानों की जमीन दखल किये हुये है। टाटा स्टील ने इस दावे को खारिज कर दिया था। परंतु कर्इ दौर की वार्ता के बाद जिला प्रशासन की पहल पर टाटा स्टील की उपसिथति में सीमांकन कराया गया। इससे यह तथ्य सामने आया कि टाटा स्टील किसानों, वन विभाग एवं सरकारी जमीन का 102 एकड़ भूभाग पर कब्जा किये हुये है।
                       इस जमीन का अधिग्रहण नहीं हुआ है और न ही यह डूब क्षेत्र में है। परंतु इस पर टाटा स्टील के कब्जे के रूप में खंभे गाड़े गये हैं। इतना ही नहीं नक्शे में भी इस क्षेत्र को स्पष्ट रूप दर्शाया गया है।  इस जमीन की मालगुजारी का भुगतान रैयत करते रहे हैं। जबकि टाटा स्टील के सुरक्षा कर्मियों द्वारा उक्त जमीन पर खेती करने से किसानों को रोका जाता रहा है। बरसों से खेती से वंचित किसान व विस्थापित क्षतिपूर्ति की मांग कर रहे हैं तो कंपनी के प्रतिनिधि टाल मटोल में लगे हैं।

2. इसी तरह से सीमांकन एवं सर्वेक्षण के बाद यह तथ्य सामने आया कि किसानों का 3.84 एकड़ ऐसी जमीन डूब में आ रही है जिसका अधिग्रहण भी आज तक नहीं हुआ है। किसी की भी सम्पति को नुकसान पहुंचाना अपराध की श्रेणी में आता है। हमने वार्ता के दरम्यान टाटा स्टील से कहा कि वे उक्त जमीन पर खेती के नुकसान का  मुआवजा दें और डूब की स्थिति को रोकने की व्यवस्था करें या वैधानिक प्रक्रिया को अपनायें।  इस संबंध में कंपनी का रूख अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा है कि कानूनी स्थितियों को वे स्वीकार करेंगे।

3. बांध विस्थापितों का यह दावा है कि उनके पूर्वजों को जमीन का समुचित मुआवजा नहीं मिला है। जमीन से उजाड़ते वक्त उन्हें एक किस्त का भुगतान किया गया और कहा गया कि बाकी दो किस्तों का भुगतान बाद में किया जायेगा। आजतक इस भुगतान का राह देखा जा रहा है।  टाटा स्टील ने अपना पक्ष रखते हुये बताया है कि लगभग 1861 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिये उसने निर्धारित राशि सरकार के पास जमा कर दी थी। अधिग्रहण एवं भुगतान की प्रक्रिया भू-अर्जन विभाग द्वारा की गयी थी। अत: टाटा स्टील इस जिम्मेवारी से अलग है। जब विस्थापितों ने अलग-अलग परिवारों को किये गये भुगतान का विस्तृत ब्यौरा मांगा तो प्रशासन एवं टाटा स्टील दोनों ही इस दिशा में जिम्मेवार भूमिका अदा करते नजर नहीं आये। यह सही है कि डिमना बांध संबंधित सारे दस्तावेज चार्इबासा में है और यह मामला भी काफी पुराना है।  हमारी अपेक्षा है कि समुचित तत्परता के द्वारा ये दस्तावेज हासिल किये जा सकते हैं और इस बिंदु का निपटारा किया जा सकता है।

 4. डिमना बांध के लिये जमीन का अधिग्रहण जनहित में किया गया था। इस आशय का एक एमओयू बिहार के तत्कालिन गवर्नर एवं टिस्को के बीच हुआ था। स्पष्ट है कि डिमना बांध का पानी पेयजल के उपयोग के लिये है। लेकिन आज टाटा स्टील की अनुसंगी कंपनी जुस्को के द्वारा पानी का व्यापार किया जा रहा है। नागरिकों को पेयजल उपलब्ध कराने में होनेवाले खर्च अर्थात उपयोगिता मूल्य लेना तो गैरवाजिब नहीं है परंतु उपयोगिता मूल्य से अधिक अनाप-सनाप तरीके से कीमत लेना न केवल एमओयू का उल्लंघन है बलिक शुद्ध रूप से एक व्यवसाय है।  सरकार का दायित्व है कि जल वितरण के वास्तविक खर्च का आकल कर उसकी कीमत निर्धारित की जाय अन्यथा इसके लाभ में विस्थापितों को भी हिस्सेदार बनाया जाय।

  5. विस्थापितों की एक मांग यह भी है कि कंपनी कर्मचारियों को जिस प्रकार शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं दी जा रही है वैसी ही सुविधाएं विस्थापितों को भी उपलब्ध करायी
जाय। इस संदर्भ में यह सुझाव भी दिया गया था कि डूब क्षेत्र के संलग्न इलाके में एक स्थायी डिस्पेन्शरी एवं एक हार्इ स्कूल की स्थापना की जाय।  कंपनी द्वारा इस क्षेत्र में फिलहाल एक कोचिंग सेंटर खोला गया है और दो स्थानों पर मोबार्इल किलनिक साप्ताहिक तौर जाता है। लेकिन हमारी जरूरत तो ज्यादा है।

उपरोक्त जरूरी व्याख्याओं के साथ हम अपनी मांगों को निम्न प्रकार से सुत्रबद्ध कर रहे हैं


1. टिस्को अतिक्रमित 102 एकड़ जमीन  की क्षतिपूर्ति दी जाय।
2. डिमना बांध में अन-अधिग्रहित 3.84 एकड़ जमीन के फसल के नुकसान की क्षतिपूर्ति दी जाय, उसे मुक्त किया जाय या कानूनी व्यवस्था की जाय।
3. डिमना बांध के विस्थापितों को बकाया मुआवजा, नौकरी तथा पुनर्वास का हक दिया जाय।
4. टाटा कंपनी द्वारा विस्थापित परिवारों को डिमना बांध के पानी के उपयोगिता मूल्य तथा लाभांश का आधा हिस्सा दिया जाय।
5. डिमना बांध में नौका विहार एवं मछली पालन का अधिकार विस्थापितों के समूह को दिया जाय।
6. टाटा कंपनी के कर्मचारियों की तरह विस्थापित परिवारों को भी चिकित्सा एवं शिक्षा सुविधा दी जाए।
7. डिमना बांध के किनारे अमरी पौधे की झाडि़यों को नियमित रूप से साफ किया जाये।
8. डिमना बांध के किनारे-किनारे लिफ्ट एरीगेशन द्वारा सिंचार्इ की व्यवस्था की जाय।
9. कारर्पोरेट सामाजिक दायित्व के तहत डूब प्रभावित क्षेत्र में ग्रामसभा की सहमति से विकास कार्य किया जाय।
10. लायलम एवं बोंटा पंचायत को पूर्ववत पटमदा प्रखंड में रखा जाय।
11. वनाधिकार कानून को शीघ्रता से लागू किया जाय।

  आशा है कि आप उपरोक्त मांगों पर तत्परतापूर्वक कार्रवार्इ कर हमारी परेशानियों को दूर करेंगे। सधन्यवाद।।  

निवेदक

झारखण्ड मुक्ति वाहिनी                                         विभिन्न ग्राम सभा के प्रतिनिधिगण

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