Monday 3 February 2014

विदेशी शिक्षा संस्था (प्रवेश और प्रचालन का विनियमन) विधेयक,2010 की आलोचना एवं सुझाव


केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित विदेशी शिक्षा संस्था विधेयक, 2010 के वितरित प्रपत्र में लिखित उद्देश्य और कारणों के कथन में यह लिखा है कि “ 1) देश में अनेक विदेशी शिक्षा संस्थाएं काम कर रही है और उनमे से कुछ विद्यार्थियों को लुभाने और आकर्षित करने के विभिन्न अनाचारों में लगी हो सकती है |देश में सभी विदेशी शिक्षा संस्थाओं के प्रचालन पर विनियमन के लिए कोई व्यापक और प्रभावी नीति नहीं है |नीति या विनियमन शासन के अभाव में विदेशी शिक्षा संस्थाओं के प्रवर्तनो का सार्थक मूल्यांकन करना बहुत कठिन हो गया है और ऐसे सार्थक मूल्यांकन का अभाव वाणिज्यीकरण के अलावा विभिन्न अऋजु व्यवहारों के अंगीकरण का अवसर पैदा करता है |
2) वर्तमान में केवल अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने ‘भारत में तकनीकी शिक्षा देने वाले विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के प्रवेश और प्रचालन के लिए विनियम अधिसूचित किये है जो केवल ऐसी संस्थाओं को लागू होते है जो अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद अधिनियम, 1987 के अंतर्गत आने वाली तकनीकी शिक्षा उपलब्ध करा रहे है’ |
3) सभी विदेशी शिक्षा संस्थाओं के प्रवेश और प्रचालन को विनियमित करने के लिए विधान का अधिनियम देश के भीतर उच्चतर शिक्षा के मानकों को बनाये रखने और साथ ही विद्यार्थियों के हित को संरक्षित करने और लोक हित में आवश्यक है |प्रस्तावित विधान का उद्देश्य भारत में उच्चतर शिक्षा या तकनीकी शिक्षा या किसी वृति का व्यवहार (जिसके अंतर्गत ऐसी संस्थाओं द्वारा डिग्री, डिप्लोमा या समतुल्य अहर्ताओं का दिया जाना है ) देने वाली या देने का आशय रखने वाली विदेशी शिक्षा संस्थाओं के प्रवेश और प्रचालन का विनियमन करने और उससे सम्बन्धित या उसके आनुषंगिक विषयों के लिए है |
इस विधेयक का अध्ययन करने के पश्चात यह बात कहीं से स्पष्ट नहीं हो रही है कि इस बिल का बनना क्यों इतना आवश्यक है? सिर्फ शिक्षा में विदेशी संस्थाओं के विनियमन के लिए या शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए? किस लिए यह कदम उठाया जा रहा है? अगर बात शिक्षा के स्तर में सुधार की है तो यह विधेयक कहीं भी सुधार की दिशा में आगे बढते हुए नहीं दिख रहा है और अगर विधेयक का उद्देश्य वास्तव  में सुधार करने का है(जो थोडा-बहुत इसमें लिखा है ) तो विधेयक में निम्नलिखित बातों का कोई ज़िक्र न होना खतरे का संकेत है |
Ø    विदेशी संस्थाओं के परिसर को स्थापित करने के लिए अधिकतम कितनी भूमि अधिगृहित की जा  सकेगी, इसका ज़िक्र नहीं किया गया है| इससे अनावश्यक तौर पर अधिक भूमि अधिग्रहण की संभावना ही बनती है|
Ø    विदेशी संस्थाओं में पढाई के लिए फीस की सीमा निर्धारित करने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है|
Ø    इन विदेशी संस्थाओं की शिक्षा की गुणवत्ता जांचने और बनाये रखने का कोई उल्लेख नहीं है |
Ø    गरीबों को फीस में छूट का कोई प्रावधान नहीं है |
Ø    शिक्षकों की भर्ती और उनकी गुणवत्ता के कोई मानक नहीं तय किये गए हैं|
Ø    विदेशी शिक्षण संस्थाएं किस स्तर की होंगी इसका उल्लेख नहीं है |
Ø    विदेशी शिक्षा संस्थाएं शिक्षा में खोज,अनुसन्धान एवं विकास पर केंद्रित होंगी इस दिशा का कोई उल्लेख नहीं किया गया है |

      छात्र युवा संघर्ष वाहिनी विदेशी शिक्षण संस्थाओं या किसी भी अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान का सैधांतिक रूप से विरोधी नहीं है लेकिन इस विधेयक को उपरोक्त प्रावधानों के न होने के कारण ख़ारिज करती है| यह विधेयक शिक्षा की गुणवत्ता,शोध एवं विकास की गारंटी तो नहीं करता; भूमि लूट,शिक्षा में अंधाधुंध व्यापारीकरण के परिघटना पर रोक का भरोसा भी नहीं देता |    
 शिक्षा के सम्बन्ध में किसी भी अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान का स्वरुप इन रूपों में लागू होना चाहिए  -
Ø  अगर बिल की आवश्यकता लगती ही है तो उसे समाज में छात्र-छात्राओं,शिक्षकों,शिक्षाविदों, सीनेट,सिंडिकेट,छात्र संघों में बहस चलाने के बाद प्रभारी समितियों के आधार पर पुनर्लिखित कर संसद में पेश किया जाना चाहिए |
Ø  फीस की सीमा तय की जानी चाहिए व उस पर लगाम लगाने के प्रभावी प्रावधान किये जाने चाहिए |
Ø  गरीबों को 25% आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए |
Ø  शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया व मानक का स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिए |
Ø  विदेशी शिक्षण संस्थाओं को 20 साल के अनुभव के बजाये विधेयक में सरकारी शिक्षण संस्थाओं व विश्व रैंकिंग में 200 तक के दर्जे वाले संस्थानों को ही भारत में संस्थान खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए |
Ø  विदेशी संस्थाओं को खोज,विकास एवं अनुसंधानों के विकास के लिए प्रतिबद्ध एवं केंद्रित होने की शर्त पर भारत में संस्थान खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए |

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