Thursday 16 January 2014

राष्ट्रीय युवा समाज साधना शिविर का प्रतिवेदन




      स्थान : गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, राजघाट नर्इ दिल्ली,                दिनांक : 5-8 दिसम्बर, 2013

गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की पहल से राष्ट्रीय युवा समाज साधना शिविर 5-8 दिसम्बर को राजघाट, नर्इ दिल्ली में सम्पन्न हुर्इ। इस शिविर में कुल 15 राज्य के युवा शामिल हुए, जिनमें बिहार, बंगाल, ओडिशा, झाड़खण्ड, आन्ध्र प्रदेश, पुड्डुचेरी, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश शामिल है। शिविर में कुल 94 शिविरार्थियों की भागीदारी रही है। शिविरार्थियों को प्रशिक्षण देने के लिए कर्इ राज्यों से प्रशिक्षक उपस्थित हुए, जिनमें अनन्ता (ओडिसा), आसिफ इकबाल, दिलीप सिमियन, फैजल खान (दिल्ली), ज्ञानेन्द्र कुमार (महाराष्ट्र), गोल्डी एम. जार्ज, दुर्गा झा (छत्तीसगढ़), देवेन्द्र कुमार (राजस्थान), च. अ. प्रियदर्शी (बिहार), अरविंद अंजुम, मदन मोहन (झाड़खण्ड), अशोक, दिनेश प्रियमन, नसीर अहमद, प्रो. लाल बहादुर वर्मा (उत्तर प्रदेश) शामिल हैं।
शिविर का पहला दिन (5 दिसम्बर 2013 को 2:00 बजे से प्रारंभ) पूर्व निर्धारित कार्यक्रम सूची अनुसार गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की निदेशिका मणिमाला द्वारा दीप प्रज्वलित कर उदघाटन किया गया। दिपेन्द्र्र अविनाश द्वारा विभिन्न राज्यों से उपस्थित शिविरार्थियों एवं प्रशिक्षकों का स्वागत किया गया। मदन मोहन के क्रांति गीत (हम तो लड़ेगें हम न डरेंगे......।) एवं नसीर अहमद के कविता तथा शायरी के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रत्येक शिविरार्थियों ने अपना-अपना परिचय दिया। सभी शिविरार्थियों को 9 समूहों में बांटा गया, सभी समूह में 10-10 प्रतिभागी शामिल हुए। समूह संख्या 1. समूह का नाम- युवा क्रांति [समूह नायिका- मानबार्इ] समूह संख्या 2. समूह नाम- सबरंग [नायक- अजमत] समूह संख्या 3. समता [नायिका- सुभद्रा चटर्जी] समूह संख्या 4. फ्रंटियर गांधी [नायिका- फरीदा ] समूह संख्या 5. निर्माण [ नायक- युवराज गटकल] समूह संख्या 6. चंद्रशेखर [नायक- अतुल] समूह संख्या 7. भगत सिंह [नायक- धर्मवीर जाखड़ा] समूह संख्या 8. क्रांतिकारी [नायक- योगेश भुसारी] समूह संख्या 9. दिव्यदीन [नायक- दीनानाथ यादव]।
दूसरा दिन का पहला सत्र
विषय -''सामाजिक समता की ओर”
अनन्ता जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि समाज में विषमता है और समता की ओर जाना है। देश-दुनिया समाज की जो परिस्थितियां है उसे देख-सुन रहे हैं। बदलने की बात चल रही है। हम जैसा बदलने की परिकल्पना करते हैं, हो सकता है वैसा नहीं हुआ हो लेकिन क्या थोड़ा बदला है। हमारे इस काम का बहुत बड़ा मूल्य है। अगर कोर्इ छोटा-छोटा काम कर रहा हैं और उसके प्रभावों के बारे में जानना चाहता हैं, तो जरा चुप होकर देखें। राज्य का क्या स्वरूप हो जाएगा? छोटे-छोटे काम भी बहुत महत्वपूर्ण काम है। यहां उपस्थित सभी लोगों का कुछ न कुछ अनुभव है। आज के विषय 'सामाजिक समता की ओर’ का अर्थ क्या है, हम कैसे पाऐंगे,आपका अनुभव क्या है? आप बोलें, उससे कोर्इ रास्ता निकलेगा।
सभी शिविरार्थियों को अपना अनुभव रखने को कहा गया, जिनमें निम्न साथियों ने अपना अनुभव रखा -
सागर (महाराष्ट्र) : समता एक ऐसी अवधारणा हैं जिसमें हम सब एक है| हम सब समानता के पक्षधर हैं। हम विषमता का विरोध करते हैं, संघर्ष करते हैं। समता के मुददे पर अपने आप को खंगालने की जरूरत है इसका सबसे बड़ा माध्यम व्यवहार है। व्यवहार में समता दिखती है, उसमें पूरकता- पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदी-नाला विभिन्नता के बावजूद सारी इकाइयां एक दूसरे को पोषण-पोषित कर रही हैं। सब एक जैसे नहीं है, लेकिन मूल तत्व है परस्पर पूरकता का, उसे हम पहचान नहीं पा रहे हैं। इसलिए मनुष्य-मनुष्य का और प्रकृति का भी शोषण कर रहा है। समानता के लिए जरूरी है पोषण व पोषित होने का संतुलन।
दिनेश पटेल (मध्यप्रदेश,जबलपुर):- समाज अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग व्यवस्था, रीति-रिवाज, प्रथाओं से संचालित होता है। शिक्षा, व्यवहार, समाज, राजनीति और धर्म इन्ही पांच आयामों में असमानता के तत्व फैल गये हैं। सभी महापुरुषों ने कोशिश की कि अपने-अपने तरीकों से जीते हुए भी राष्ट्रीय मुददों पर एकजुट हो जाऐं। गांधी, बुद्ध ने अपने ज्ञान में जाति-पाति नहीं रखी। अम्बेदकर ने भी वर्गीय असमानता के विरोध में मनुस्मति को जलाकर समानता लाने की कोशिश की।
सुरजीत (पश्चिम बंगाल):- जाति के चलते मुझे बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा। स्कूल में पांचवीं कक्षा में गया तो मेरा धर्म पूछा गया - मुझे पता नहीं था। घर में आकर पूछा तो पिताजी ने कहा कि new born baby की जाति-धर्म क्या है? हमलोगों के अन्दर यह भेदभाव है। हम खुद को new born baby मानना होगा। भगवान तो हमें इंसान बनाकर भेजते हैं। boundary हम ही बनाते हैं। हमें खुद को बदलना होगा। हमने जो सीढ़ी बना ली है उसे flat platform बनाना होगा।
शादी के बाद लड़कियों की पहचान बदल दी जाती है, क्यों? यह नहीं बदलनी चाहिए। आपने क्या अपने घर में किसी दूसरे वर्ग जाति-धर्म में शादी की है? नहीं की, तो ऐसा क्यों? शादी करते समय ये पहचानें क्यों देखी सुनिशिचत की जाती है? ये सब हमारे अन्दर भी जीवित हैं। पहले खुद सीखना-बदलना चाहिए। हमें अपना शिक्षक बनना चाहिए, खुद को एक बच्चा मानकर सीखना चाहिए।
बिलाल (जम्मू-कश्मीर):- First thing is humanity. Prophet Mohammad was in makkah sharif. Prophet saw a woman and asked her where are you going? She said I’m going to home, prophet said I will take your luggage. She was surprised. Now days nobody is willing to help anybody. After reaching the home that woman offered a cup of tea to the Prophet. Instead of taking tea he gave advised to her Allah is one. She said are you mad? Then prophet told her that people called him “Prophet Mohammed”. After hearing this, women had tears in her eyes. That woman (a non-Muslim) adopted Islam. But in today’s world humanity is not found in people. How can we change the world? Humanity is the only thing by which we can change the world. Mahatma Gandhi was a philosopher if you look his philosophy- He was also of the same opinion; we can overcome all the problems with the help of humanity.
रमेश (आन्ध्र प्रदेश):- Farmers are the back bone of our country. We are wasting the food, which should be preserved for the future generations. Farmer’s role is important, but he is being cheated, when the traders exploit him by not providing the proper cost of his production.
हरिता (छत्तीसगढ़):- Gender and Caste are the result of inequality in society.  Inequality has many forms and economic inequality has been prevalent since centuries. US and UK had been smuggling slaves since many years.
दुर्गा झा (छत्तीसगढ़):- केरल में brutal breast tax 1930 तक था, जिसके खिलाफ आंदोलन चला और वह खत्म हुआ। Food culture जलवायु और भौगोलिक स्थिति के निदान से चलता है, उसे समझना चाहिए। testy, non-testy और अपनी रुचि के आधार पर नहीं। महार आंदोलन में नहीं 1925 में मनुस्मृति जलार्इ गर्इ थी। महार आंदोलन पानी का आंदोलन था। दलितों को पानी का समान अधिकार मिलना चाहिए था।
आसिफ इकबाल 'धनक (दिल्ली):- अंतरधार्मिक विवाहित जोड़े जो जिन्दगी जी रहे हैं,वो बहुत कठिन । हमने 2004 में यह प्रयास किया की अंतरधार्मिक विवाहित जोड़ों का एक मंच बनाया जाए जो भी व्यक्ति अंतरधार्मिक विवाह करना चाहते है वो right to choice’ के आधार पर ऐसा कर सकें,उसके बीच शादी में जाति-धर्म नहीं आना चाहिए। रोटी-बेटी के मसले पर विवाद रोटी वाला कुछ सुलझा है लेकिन बेटी वाला अभी भी उलझा है। भारत में बहुत सी सामाजिक संस्कृति समान है,आप नहीं कह सकते वे किस धर्म से है। बयावर चीताकाठा में नाथनोगी, बंगाल में बाउल समाज दो मान्यताओं को मानता हैं। खतना, निकाह, दफन, साथ में होली, दिवाली, मंदिरों जाना आदि हिंदू मुस्लिम दोनों ही करते है। निकाह या फेरे करना है वह लड़की वाले तय करते हैं।
निकुंज (उन्नाव,उ.प्र.):- उपनाम हटाने की बात पर कहीं न कहीं हम समाज में एक नर्इ category तो नहीं बना रहे। गलती सामने वाले की मानसिकता में है। क्या हम एस.टी/एस.सी. नाम के साथ comfortable नहीं हो सकते, बजाए नर्इ category बनाने के।
 सचिन (महाराष्ट्र):- बहुत बार मजबूरन उपनाम लगाना पड़ता है- आरक्षण के मद्देनज़र, चुनाव के संदर्भ में आदि।
सागर :- असुरक्षा का भाव समुदाय से जोड़ता है। रोटी-बेटी के संदर्भ में, उस भय से उबरना जरूरी है।
अतुल (हरियाणा):- जापान में भी ऐसा ही था। अब वहां 50 प्रतिशत shintoishm को नहीं मानते। आने वाले समय में यहां भी ऐसा होने वाला है।
गायत्री (छत्तीसगढ़):- मैं अपने घर से ही शुरूआत करूंगी। हमारा भार्इ love marriage किया है। मेरे घर वालों ने मेरी शादी के लिए दबाव डाला। मैनें शादी करने से मना कर दिया फिर भी मेरी शादी हो गयी। हमलोग 'चौहान’ कहलाते हैं, वहाँ पर राजपूत क्षत्रिय होने का गर्व होता है।
मौरेश्वर (महाराष्ट्र):- जब तक मानवीय दृषिटकोण नहीं आएगा, सामाजिक समता संभव नहीं। मानवीय दृषिटकोण विचार, संस्कार, घर-परिवार के वातावरण से बनता है। विचार और आचरण कैसे बदलेगा? आचरण जब समतामूलक बनेगा, तब समतामूलक व्यवहार मानव मुक्ति के साथ जाति-धर्म, लिंग-वर्ग के बारे में जो असमानता है वह खत्म करेगा।
            कर्इ महिला संगठन ने स्त्री-पुरुषों के बीच बड़ी खार्इ खड़ी कर दी है। स्त्रीवादी संगठन पुरुषों जैसे रहना, आचरण करना समानता नहीं, समानता पूरकता से होगी। पूरकता के साथ मानवीय दृषिटकोण लेकर सामाजिक समता स्थापित करनी होगी।
दीनानाथ यादव (महाराष्ट्र):- कन्या भ्रूण हत्या का सवाल? समतामूलक व्यवस्था परिवार में ही शुरू नहीं हो पाती है |भारत में स्त्री-पुरुष 941:1000 का अनुपात है। शिक्षा, व्यापार, राजनीति के स्तर परिवार में ही तय नहीं कर पा रहे हैं। गर्भ में बेटा-बेटी का पता लगाने के लिये कर्इ आधुनिक तकनीकों को इस्तेमाल हो रहा है। प्राकृतिक तोर पर बेटा-बेटी को सहजतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए।
अनन्ता - कहीं न कहीं लगता है, कि समाज में त्योहारों में रिती-रिवाज चलता है लेकिन कहीं न कहीं सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है। ओडिसा का एक उदाहरण- 'नोआखार्इ’ पर्व कृषि आधारित समाज संस्कृति के लिए गर्व करता है। लेकिन सामाजिक विषमता की उसी परंपरा संस्कृति के नाम पर बढ़ावा देता है। पुरोहित तय करते हैं कि कब धान की फसल काटेगी। मंदिर द्वारा केंद्रित राजा सामंत के बिना चल ही नहीं सकता। व्यवहारों परंपरोओं को परखना पड़ेगा,यदि सामाजिक समानता की ओर जाना है। क्या कोर्इ नया कार्यक्रम आ सकता है? क्या हर कोई दलितों के हाथों खाना खाऐगा? हजारों साल पुरानी परंपरा संस्कृति के नाम पर बढ़ावा, उसे जानने समझने की जरूरत है। हम जो आंदोलन करते हैं उसका परिणाम नहीं देखेंगे। तो परिणाम के खिलाफ फिर आंदोलन की जरूरत है। दिल्ली में घटी घटना पर देश भर में लोग एकजुट हो जाते हैं। सरकार भी कुछ सक्रिय हो जाती है। लेकिन हमारी मांग क्या सामाजिक विषमता को बढ़ाती है। सुरक्षा, पुलिस, फोर्स बढ़ार्इ जाए। सामाजिक दमन की आशंका भी बढ़ जाती है। महिलाओं के प्रति दृषिट जबतक नहीं बदलेगी क्या कुछ हो सकता है ?  
अब करीब हर शहर में आत्म सुरक्षा के नाम पर महिलाओं को जुड़ो-कराटे की शिक्षा दी जा रही है। जबकि आदिवासियों के शास्त्र को उठाने को स्वीकार नहीं करते | विचार और आदर्श सहित आंदोलन का प्रभाव बहुत समय टिकता है। मिस्त्र का उदाहरण देते हुए कहा कि बहुत से लोगों की आंदोलन के दौर में मृत्यु हुर्इ। भारत में अन्ना हजारे के आंदोलन में हजारों लोगों ने सहयोग दिया उसके बावजूद किसी की मृत्यु नहीं हुर्इ - गांधी के अहिंसात्मक पृष्ठभूमि का कारण।
गांधी ने कहा था कि वह जनता का निशस्त्रीकरण चाहते हैं। जनता के मन की अहिंसा से काबू किया गया। विचार और आदर्श व्यवहार में बदल जाता है।
सामाजिक समता का दूसरा पहलू आर्थिक गैर-बराबरी है। मौजूदा परिस्थिति जैसी है, इसमें समतामूलक समाज की कल्पना नहीं कर सकते हैं। हमारी व्यवस्था से ही आर्थिक ढाँचे को बदलने कि जरुरत है। विकेन्द्रीयकरण से ही राजनीतिक व्यवस्था प्रतिबिम्बत होती है, उसी के आधार पर आर्थिक नीति।
समतामूलक समाज की बात करते हुए हमें स्पष्ट होना होगा कि हम किन बातों के मददेनजर समता की बात करेंगे। एक ऐसा समाज जिसमें मालिक नौकर का रिश्ता न हो, शोषण-शोषित की स्थिति न हो, तभी समतामूलक समाज बना पाएंगे। आज की परिस्थिति में कैसा कार्यक्रम बनाना होगा। इन चुनौतियों का मुकावला करने के लिए, इसके लिए समूह-संवाद के जरिये बात आगे बढ़ेगी।
कुमार दिलीप - सामाजिक समता का action program क्या होगा?
इसके बाद समूह चर्चा हेतु सभी समूह को 30 मिनट का समय दिया गया।
दूसरे दिन का दूसरा सत्र
देवेन्द्र कुमार के क्रांति गीत ''हिन्दू या मुसलमान,सिख हैं, र्इसार्इ हैं या पारसी हैं हम..के साथ सत्र प्ररंभ किया गया। इस सत्र में सभी समूहों ने अपनी-अपनी समूह चर्चा कि रिपोर्ट रखी। हर समहू ने जो बात रखी उनमें से कुछ बातें महत्वपूर्ण रही, वे निम्नलिखित है-
समूह संख्या 1. शिक्षा में गुणात्मक बदलाव हो और उस शिक्षा का विकास हो उसके लिए संघर्ष करना।
समूह संख्या 2. स्त्री-पुरुष विषमता को दूर करने के लिए इंसानियत को साथ रखकर काम करना है।
समूह संख्या 3. सत्य और अहिंसा को अपनाना होगा।
समूह संख्या 4. गांधी जी के ग्राम स्वराज को आगे बढ़ाने का काम करना होगा।
समूह संख्या 5. स्वयं में बदलाव और व्यवहार में बदलाव लाना है।
समूह संख्या 6. जाति-भेद, छुआ-छूत, धर्म भेद, स्त्री-पुरुष भेदभाव को खत्म करना है।
समूह संख्या 7. नौजवानों को इस प्रक्रिया में जोड़ना है और बीमार समाज को सुधारना है।
समूह संख्या 8. छोटे-छोटे बच्चों के लिए काम करना होगा।
समूह संख्या 9. सरकारी व्यवस्था को सुधारने का काम करना है।
दुर्गा झा - किसी साथी ने कहा कि पुरुष घर का पूरा जिम्मा संभालते है और महिला उनका सहयोग करती है। लेकिन ओडीसा, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ में जाकर दखियेगा तो आदिवासी समाज में स्त्री-पुरुष समानरूप से काम करती है। और दोनों मिलकर घर का जिम्मा संभालते हैं।
मुकुन्दर – आज समाज में बहुत सी महिलाओं को डायन कह कर प्रताड़ित किया जाता है|इसका विरोध होना चाहिए|
मौरेश्वर - आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा समानता है परन्तु अन्य समाज में अधिक भेद-भाव है।
सुरजीत - जब कोर्इ महिला विधवा होती है उस समय सबसे पहले महिलाएं ही उन्हें सफेद साड़ी पहनाती है, चुड़ी तोड़कर फैकना आदि करती हैं। इन्हें सुधारने की जरूरत है।
मुकुन्दर - सुरजीत के बात से लगता है कि समाज अभी भी , कहीं न कहीं पुरुष प्रधान ही है।
कुमार दिलीप - महिलाओं को कमजोर और हीन दृषिट से देखा जाता है, उन्हें मानसिक, शारिरीक रूप से कमजोर माना जाता है।
गायत्री - महिलाओं को डायन कहा जाता है और डायन के नाम पर उनका मुंडन कराया जाता है तथा उन्हें गोबर, मल-मूत्र आदि खिलाया-पिलाया जाती है। उसे बदले की जरूरत है।
सुभद्रा - महिलाओं को शिक्षित होने से रोका जाता है।
अशोक (उन्नाव) - आप लोगों ने काफी गहरार्इ से विषय खंगाला है। आप को दिमाग खोलकर सोचने की जरूरत है। वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के जड़ में आप जाऐेंगे तब आपको पता लगेगा कि समाज की क्या स्थिति है। अच्छी बातों को व्यवहार में लाने की जरूरत है। बहुत प्राथमिक बात है लेकिन बहुत कष्टदायक और कठिन काम है। इसमें आप लगातार प्रयास करने पर सफल हो सकते हैं। अगर आप इसे व्यवहार में अमल कर लेंगे तो समाज अपने आप बदल जायेंगे।
देवेन्द्र कुमार - मैं एक कहानी सुनाता हूँ- एक राजा था। उसने प्रजा के लोगों को हथकड़ी लगाकर रखा था। उनमें से एक की हथकड़ी टूट गई और वे राजा के पास गया। उसने राजा से कहा कि महाराज मेरी हाथकड़ी टूट गई। मुझे हथकड़ी लगा दीजिए, तो राजा ने कहा कि छोड़ दीजिए अब आपको हथकड़ी लगाने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब आप मेरे मानसिक रूप से गुलाम बन गये हो।
दूसरे दिन का तीसरा सत्र:
विषय -''विज्ञान, तकनीक और समृद्धि
देवेन्द्र कुमार- विज्ञान, तकनीकी और समृद्धि में क्या रिश्ता है? आपने विज्ञान क्यों पढ़ा? क्या आप सोचते हैं कि विज्ञान पढ़ने से intelligence बढ़ता है? (कुछ लोगों ने कहा –विज्ञान रटना नहीं पड़ता) देवेन्द्र जी- जितना विज्ञान कोटा (Hub of eng. & med. Coaching)में रटाया जाता है उतना तो पूरे देश में नहीं रटाया जाता है | आप कुछ भी science, arts, commerce पढ़ते हो क्यों-“ नौकरी के लिए” ,कोर्इ भी ज्ञान के लिए नहीं पढ़ता है| इस स्थिति में हमारे लिए जरूरी होता है कि विज्ञान और तकनीक को समझें ? विज्ञान किसे कहते हैं? विज्ञान और कला में क्या फर्क है? कुछ इसी तरह के प्रश्नों के साथ विषय का प्रारंभ किया गया।
“कुछ लोगों के हिसाब से विज्ञान logic पर चलता है जबकि कला नहीं |”
देवेन्द्र कुमार - प्लेटो, अरस्तु जब हुए,वे कहते थे कि शिक्षा के लिये 3 चीजे ज़रुरी है- वे उसे 3 आर कहते थे। 1. Reason 2. Rhetoric 3. Arithmetic इनका परस्पर संबंध था, तब विज्ञान और कला का बंटवारा नहीं था, जो बाद में हमने कर दिया। । (कुछ लोगों ने कहा विज्ञान accurate है) देवेन्द्र जी- विज्ञान कैसे accurate है? Atom के Development की पूरी study में आप यह कभी नहीं कह सकते हैं कि electron यहां है या नहीं| आपमें से कौन भूत-प्रेत को मानते हैं? आप क्यों नहीं मानते हैं?(उत्तर –क्यों कि हम भूत को देखे नहीं है)आपमें से कितने लोग Newton law of gravity को माने हैं?(लगभग सभी )ये नियम कब से है ,न्यूटन पैदा हुआ उसके बाद का या उससे पहले का ? तो गुरुत्वाकर्षण तो big bang से पहले से था पर नियम बाद में आया| इस तरह हो सकता है भूत भी होगा| लेकिन कहा जाता है -It’s the ghost of science | विज्ञान पढने वालो को हमेशा ज्यादा समझदार कहा जाता है इसलिए 10वीं में सबसे अच्छे अंक लाने वाले विज्ञान विषय पढ़ने को प्रेरित किये जाते हैं। 12वीं में विज्ञान विषय में अच्छे अंक लाने वाले तकनीकि विषय में जाते हैं। पिछले 500 सालों से हमारे पास बेहतर कला वाले नहीं है। अपने बच्चे को शिक्षक कौन बनाना चाहते हैं। सब इंजीनियर, डाक्टर, बैंक मैनेजर, कालेक्टर बनाना चाहते हैं तो फिर अच्छे शिक्षक कहां से आयेंगे? विज्ञान और वाणिज्य से बचे हुए कला में जाऐंगे-ऐसी धारणा रही है-समाज में। समाज में सिर्फ तकनीक से काम चलने वाला नहीं है। तकनीकि का दुरूपयोग करके आप भ्रूण में लिंग पता लगाकर उसी में मार देते है आदि , लेकिन इनकी शुरूआत के समय कहा गया था कि Science & Technology are value free & Neutral. Technology अगर Neutral है, तो क्या वह समाज के हर तबके को लाभान्वित करती है? Technology को कौन Control करता है? इस पर निर्भर करता है। Euclid के Postulates के आधार पर रेखागणित चलती है। जैसे - किसी त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180 डिग्री होता है और किसी त्रिभुज में केवल एक Right angle होता है। अगर मैं कहूंगा कि किसी त्रिभुज में दो या तीन Right angle होते हैं तो आप विश्वास करेंगे! नहींThink of globelongitude/ latitude उसमें parallel lines होते हैं। यूकिलड ने साबित कर कहा कि किसी दूरस्थ बिन्दु से आप केवल एक ही सामानांतर रेखा खिंच सकते है | सभी लोग यही मानते थे लेकिन एक वैज्ञानिक पॉइंटर ने इसे सिद्ध करने की कोशिश की ओर बाद में कहा कि आप किसी दूरस्थ रेखा से चाहे जितनी सामानांतर रेखा खिंच सकते है | आप जो पढ़ रहें है वो एक समतल में  है लेकिन ब्रह्माण्ड में कुछ भी समतल  में नहीं होता ,आइंस्टीन के बाद कहा गया कि दुनिया में कुछ भी समतल नहीं है, जमीन खूद में समतल नहीं, curve है। एक हंगेरियन एक रशियन दोनों ने पांचों postulates को तोड़कर एक नया सूत्र दिया - 3D का |
- किसी भी सवाल के एक से ज्यादा उत्तर और सभी सही हो सकते हैं, लेकिन हमें बचपन से पढ़ाया जाता है कि यही सही है बाकी सब गलत! या तो आप हमारे साथ हैं या दुश्मन!
- असल में भूत-प्रेत को समझने के लिए उस context को समझना पड़ेगा, जिसमें भूत-प्रेत माने जाते थे। आपको कोर्इ चीज एक angle से एक, और दूसरी तरफ से भिन्न दिख सकती है। logic/science/reason अलग नहीं है, अलग कर दिये गए हैं। सत्ता शिक्षा को अपने हिसाब से चलाती हैTechnology वाले बेहतर क्योंकि Atom bomb बनाते हैं? वो अच्छा भी बनाते है लेकिन सवाल यह है कि Technology को कौन control करता है। Technology हमारे साथ रहने वाली है, हमें उसके साथ रहना सीखना पड़ेगा। हमें कैसे Science/Technology का उपयोग आम लोगों की समृद्धि के लिए कर सकते हैं।
-Science/Technology एक ही है या अलग?
-Science मुख्यतः theory जबकि Technology मुख्यतः practical है । तकनीक हमारी जिंदगी को बेहतर या बदतर कर सकती है यह हम पर है। विज्ञान खुदा नहीं, इन्सान खुदा है। क्या आप मानते हैं आप जो विषय पढ़ते हैं, उसका महत्व है? अब हर कोर्इ ज्ञान के लिए नहीं नौकरी के लिए पढ़ता है। गेस पेपर से पढ़कर दो दिन में परीक्षा देंगे तो कैसे शिक्षक बनेंगे? हमें उत्तम बनना है, श्रेष्ठ नहीं।
- दिक्कत कहां है, जब आप science/technology को separate ब्रैकट में रखकर कहते हैं- यही श्रेष्ठ है, इसी से समृद्धि आ सकती है।
समृद्धि किसे कहते हैं? सभी चीजों का उपलब्ध होना। Three idiots फिल्म में सवाल पूछता है किे space में आप फाउण्टेन पेन का इस्तेमाल नहीं कर सकते, इसलिए बाल पेन का आविष्कार किया। अमिर खान पूछता है कि वहां पेन्सिल का उपयोग क्यों नहीं किया। जवाब-उसे छीलोगे तो कचरा कहां जायेगा, इसलिए बाल पेन का उपयोग किया गया। क्या इस technology के आने से दुनिया के अधिकतम लोगों में समृद्धि आर्इ है। technology को जो control करता है, उस लिहाज से कुछ गड़बड़ हो रहा है। सोनोग्राफी मशीन लिंग बताएगा, डाक्टर पर है कि वह आपको बताए या नहीं। यह उनपर निर्भर करता है, जो technology को control करते है। science/technology cannot be neutral. सत्ता जैसे काम लेना चाहेगी, वह लेगी। आइंस्टीन ने कहा कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गर्इ, लेकिन लाखों के मर जाने के बाद। यह सत्ता जनता के हाथ में कैसे आएगी, यहे science/technology का मुददा नहीं है। यह आपको दूसरी चीजें समझाएंगी। science/technology को अलग ब्रैकेट में रखने की जरूरत नहीं है। Knowledge को comfortable करने की जरूरत नहीं। गुलाब और कैक्टस दोनों ही खूबसूरत है। चीजों को देखने के कर्इ आयाम हो सकते हैं, वे सभी सही हो सकते हैं। हमारे लिए गोरा रंग शांति का प्रतिक है और अफ्रीका में काला है। चीजों को देखने का नजरिया अलग-अलग होता है। science perfect नहीं है, यह science भी मानती है। हमारी सोच से बिल्कुल अलग सोच रखने वाला भी सही हो सकता है।
- आप जब यहां से जाएंगे, तो क्या value लेकर जाएंगे? बड़ी-बड़ी बातें करना आसान है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या कोशिश करेंगे? तो यदि आप समृद्ध समाज बनाना चाहते हैं। समता, समरसता, समझ, का समन्वय बनाना पड़ेगा। science हमें देखने की दृषिट देती है, reasoning सिखाती है।
- गांधी कहा करते थे- दिमाग के काम का पैसा नहीं होना चाहिए। आपको रोटी शारीरिक श्रम से मिलनी चाहिए। कैंसर की एक दावा 80 रु. में मिल सकती है लेकिन हजार रु. में मिलती है। science/technology का गलत फायदा उठाया गया है। हम ऐसे मूल्य लेकर जाए कि - मौके का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए, कम से कम दूसरे व्यक्तियों की कीमत पर तो नहीं |
सागर - समृद्धि को थोड़ा define करें?
देवेन्द्र कुमार - जब दुनिया में हर व्यक्ति के पास शांतिमय जिन्दगी जीने के व्यापक संसाधन हों।
अरविंद अंजुम - सम़+वृद्धि : समृद्धि, सबकी समान वृद्धि। सवाल आता है कैसे बदलेंगे? बदलना बहुत कठिन काम है। अभी खबर पढ़ी होगी कि बोधगया के बौध मंदिर के dome को स्वर्णजनित करने के लिए थार्इलैंड के राजा द्वारा 240 किलो ना भेजा जाऐगा। अगर वह 240 किलो कोयला भेजता तो उसकी आलोचना होती। 240 कि. सोना भेजने पर वाहवाही होती है। यह है invisible world हम जो चाहते हैं वही होता है। यही invisible world हमारे visible world को बनाता है।
आप जो 'समवृद्धि की बात कर रहे हैं वह कैसे समाज में स्थापित होगी? जब समाज कि consciousness develop होगी। हमारा नजरिया होना चाहिए कि समाज के हर इंसान को science/technology जो सुविधा उपलब्ध करा सकती है, उस दिशा में बढ़ें। आज की खोज से हम कल आगे बढ़ जाएंगे। न्यूटन ने कहा कि तमाम वैज्ञानिकों के कंधों पर चढ़कर हम वहां तक पहुंचे। उसी तरह society में भी कोर्इ चीज final नहीं होती है। science का नजरिया यह कहता है कि दिमाग को खुला रखना है common person, वंचितों, गरीबों को केंद्र में रखकर नीति निर्धारण की ओर बढ़ना है।
देवेन्द्र कुमार के गीतों के साथ सत्र की समापन किया गया।

शिविर के तीसरा दिन का पहला सत्र

विषय -''भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और लोकतंत्र”

दिनेश प्रियमन - साथ दो कि जिन्दगी की जगमगा हटें, जगमगा उठें .....क्रांति गीत से सत्र का प्रारंभ हुआ।
प्रो. दिलीप सिमियन - मैं कैसे एक अन्य विचाधारा के होने के बावजूद गांधी को मानने लगा। जब में गाँधी जी के बारे में अध्ययन कर रहा था तब मुझे लगा कि यह आदमी मुझसे कुछ कह रहा है| कहा जाता है कि गाँधी जी पाकिस्तान को 55 करोड़ रु. दिलवाना चाहते थे| उसके पहले नोआखाली के दंगों को शांत करवाने में माउन्ट बेटन ने उनकी भूमिका की सराहना की थी| उन दिनों गाँधी जी सत्ता के ढांचे से दूर थे- जनता के नजदीक थे| वह दुनिया के नेताओं में उस समय अकेले थे, जो जनता के करीब थे| वह दिल्ली से पंजाब जाना चाहते थे और चाहते थे की काफिले के साथ वापस पाकिस्तान जाए और वहाँ से मुसलमानों को वापस लाये| लेकिन दिल्ली के माहौल के कारण वही ठहर गए| वे दिल्ली में रहकर शांति स्थापित करना चाहते थे| उस दौर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों- सोमनाथ मंदिर, जाति व्यवस्था आदि पर लिखा| हिन्दुओ ने दिल्ली में कुतुबुद्दीन बख्तियार के मज़ार को हथिया लिया था और कई मस्जिदों पर भी कब्ज़ा कर लिया था| उन्होंने बख्तियार की मजार को छुड़ाने हेतु अनशन पर बैठने की बात की| उनसे पूछा गया कि किसके खिलाफ अनशन पर है तो उन्होंने कहा,पाकिस्तान के मुस्लमानों और भारत के हिन्दुओं-सिखों के खिलाफ है, उन्हें अपने पड़ोसियों को सुरक्षित रखना चाहिए| वह 5 दिनों के उपवास पर बैठे| अनशन के दौरान गाँधी जी की तबियत बिगड़ने लगी| अंत में 18 जनवरी 1948 को दिल्ली के नागरिकों और सारी पार्टी के लोगों ने वक्तव्य दिया कि बख्तियार काजी के मजार को मुसलमानों को लौटाया जायेगा और लोगों को सुरक्षित रखने की कोशिश होगी| तब गाँधी ने अपना उपवास तोड़ा|
उनके अंतिम अनशन के आसपास उनकी टिप्पणियां,वसियतनामा- जैसे सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हो वो भी हिन्दुओं द्वारा, सरकार द्वारा नहीं| इन टिप्पणियों से हिन्दुवादी संगठन नाराज थे|  20 जनवरी को गाँधी जी के घर के पास ही बम विस्फोट हुवा व् मदन लाल पह्वर पकड़े गए| लोगों ने गाँधी जी को सुरक्षा लेने के लिये कहा लेकिन गाँधी जी ने कहा उन्हें security की जरुरत नहीं है |
                            उनकी प्रार्थनाओं के दौर में कुरान के अंशों को लोग सुनना नहीं चाहते थे, तो उनका कहना था कि वह कुछ नहीं पढ़ेंगे, प्रार्थना करेंगे| गाँधी को पता था कि उनके मरने की साजिश रचने वाले विष्णु के उपासक थे|
धार्मिकता secularism को आधार नहीं मानती| secular होने का मतलब यह नहीं कि आप अपना  मज़हब छोड़ दें| गाँधी जी ने दिखा दिया कि वह धार्मिक होते हुए भी सभी धर्मों के लोगों को प्यार करते थे| गाँधी जी का कहना था कि वह पाकिस्तान के भी नागरिक थे और उन्हें वहां जाने के लिए वीजा की जरुरत नहीं है|
सीमांत गाँधी के नाम से प्रख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान के जनाजे में पाकिस्तान-अफगानिस्तान के लोग शामिल हुए थे| वह बिना वीजा के 4 मुल्कों- भारत/ पाकिस्तान/अफगानिस्तान/ बांग्लादेश जा सकते थे|
हमारे देश में गाँधी जी की हत्या करने वालों का गुण आज तक गाया जाता है|  निहत्थे आदमी को गोली मारना कहाँ की दिलेरी है| मारने वालों की नफ़रत की राजनीति आज भी पनप रही है |हिंदूवादी लोग गाँधी जी के बारे में कहते थे-He is the lover of Pakistan. गाँधी तमाम मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते थे|
गाँधी जी ने अहिंसा की जो राह दुनिया को दिखाई थी उस पर दुनिया में कई जगह प्रयोग हुए| हवलदार मेजर चन्द्र सिंह गढवाली के नेतृत्व में रॉयल गढवाल राइफल्स के जवानों ने भारत की आजादी के लिये लडनें वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलानें से इन्कार कर दिया था। बिना गोली चले, बिना बम फटे पेशावर में इतना बडा धमाका हो गया कि एकाएक अंग्रेज भी हक्के-बक्के रह गये | चन्द्र सिंह गढ़वाली JCO था| वह सैनिक टोपी पहनते थे लेकिन उन्होंने गाँधी टोपी पहनी और उसे सलाम किया कि अब अच्छा कम करेगें | यह अहिंसा का प्रतीक था| एक अन्य उदाहरण के तौर पर – पहले गुरूद्वारे ब्रिटिश संरक्षण के महंतों के अधीन थे,गुरूद्वारों को वापस लेने का आंदोलन 1922 में ननकाना साहब को मुक्त करने हेतु हुआ| इसके लिये अकाली आंदोलन चला। गांधी जी ने सी.एफ.एण्ड्रूज को शांति स्थापित करने के लिये भेजा। सिख जत्थे किसी भी प्रकार की हिंसा न करने का संकल्प लेकर निकलते थे। पुलिस दमन के विरोध में प्रतिहिंसा नहीं की गई।  लोगों में अहिंसा को साधन की दृष्टि से देखने की कोशिश होती रही है, दार्शनिक  स्तर पर समझने की नहीं। गांधी ने बहुत महान बात की- “आप डर के बल पर जो पाते हैं, उसे बनाये रखना मुश्किल है। हिंसा का एक चक्र बनता है जो कभी खतम नहीं होता है |”
 अभी भी हिंसा की बहुत सी संस्थाएं कायम है।
दुर्गा झा - गांधी का वर्णाश्रम व्यवस्था। नरम हिन्दुत्व को पहचानना मुश्किल है  ज्यादा खलनायक पूना पैक्ट के बाद गाँधी जी अंतर्जातिय विवाहों में जाना silently छोड़ें, शायद publicly करते तो ज्यादा प्रभावशाली होता। जय प्रकाश आंदोलन में लोगों ने जाति छोड़ी, अंतरजातीय विवाह की, प्रक्रिया भी चली। गांधी ने किया होता तो ज्यादा प्रभावी होता। शायद दोनों धाराओं को मिलना पड़ेगा।
दिनेश प्रियमन - ''जब तक अपने स्वप्न रहेंगे, स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे....।“
अशोक - प्रो. दिलीप सिमियन के वक्तव्य का सार बताते हुए सत्र का समापन किया।

तीसरा दिन दूसरा सत्र

विषय- धर्म, साम्प्रदायिकता और राष्ट्रीय एकता
गोल्डी एम. जार्ज - 'साम्प्रदायिकता’ शब्द को आप जानते हैं- आप क्या समझते हैं?
अपने धर्म को दूसरों के धर्मों से श्रेष्ठ मानना,कोर्इ भी एक समुदाय की उसकी आस्था को सबसे उत्तम मानना और दूसरों से जबरन मनवाने की कोशिश करने से साम्प्रदायिकता का जन्म होता है| हाल में उ.प्र. में साम्प्रदायिक दंगा, कन्धमाल ओडिशा के दंगा और गुजरात दंगा के बारे में आपको मालूम ही होगा। एक सम्प्रदाय द्वारा दूसरे सम्प्रदाय के प्रति नफरत कैसे पैदा होती है ?अलग-अलग धार्मिक आस्थाओं को मानने के कारण होता है। पितृभूमि-पुण्यभूमि की अवधारणा को सरकार ने 1922 में essential of Hinduism में रखा, जिसने हिन्दू महासभा, आर.एस.एस. की जमीन तैयार की। उसके बाद बंकिम का 'आनन्दमठ’, मुसलमानों के खिलाफ ‘सन्यासी विद्रोह’, 1905 में ‘बंग भंग’ ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया| आज कल 'हिन्दूत्व’ वोट बैंक का हिस्सा व् नारा बना है। र्इसार्इ, मुसलमान समुदायों में भी वह कटटरता आयी है और यह खतरनाक रूप लेती जा रही है। बाबरी मस्जिद के demolition के समय से राजनीति का साम्प्रदायिकरण शुरू हुआ।
फैजल खान - इस देश के secular आंदोलन की सबसे बड़ी कमी रही कि यह ठहरा रहा, दरिया बनकर दूर तक नहीं गया। इनके पास लोग नहीं है, दिल्ली में बैठक करने पर 30 संगठनों के 25 लोग इकटठा होते हैं।
धर्म का रूप जब negative हो जाता है, तब उस धर्म से साम्प्रदायिकता जन्म लेती है। जब साम्प्रदायिकता बढ़ती है, तब एकता पर संकट आता है। त्याग, करुणा व् सबका भला ये तीन बातें दुनिया के सभी धर्म में होती है। एक बार मो. साहब से किसी ने पूछा सबसे बढि़या इंसान कौन? जवाब- ‘जो सबका भला करें’। समस्या तब पैदा होती है, जब धर्म राजनैतिक पार्टी बन जाती है। धर्म का असली मकसद welfare of humanity है|
साम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए दो-चार सावधानियां बरतने की जरूरत है।
1.         आपकी भाषा सरल व शांत होनी चाहिए |
2.         'राम को किसी के हाथों में नहीं देना है’ |
3.         लोगों की emotions के साथ आप अपनी भाषा, emotions को link कर लें।
मेरी परेशानी है कि मुझे वही 100 लोग हर जगह दिखते हैं इस संख्या को हमें बढ़ाना है, जबकि हमारे पास वह सभी चीजें मौजूद है, जो हमें बढ़ा सकती है। इतने dedication के बावजूद strong secular movement नहीं है, इसलिए अपनी कमजोरियों को देखते-समझते हुए, हमें अपनी कार्यनीति बनाने की जरूरत है।
अरविंद अंजुम - धर्म, साम्प्रदायिकता, राष्ट्रीय एकता- हमें जितना इन्हें समझना है, उससे ज्यादा इनमें सुधार करना है। धर्म का एक मानवीय स्वरूप जबतक केंद्र में रहता है, वह human welfare करता है, लेकिन जब वह केंद्र से निकल जाता है, ढांचा बनता है तो वह अहंकार पैदा कर्ता है कि केवल उसी से काम चलेगा। जब यह सत्ता से जुड़ता है, वह दूसरों के लिए खतरनाक हो जाता है। democracy एक system है इस में आपको अल्पसख्यकों कि सुरक्षा करनी होगी अन्यथा democracy नहीं चल सकती है। secularism पर आम आदमी को ही नहीं काम करना है - यह policy है, जिस पर state को भी काम करना है। धर्म से अलग रहकर जनता के लिए काम करना चाहिए। जनता को सभी धर्मों को समान आदर देना चाहिए।

तीसरे दिन का तीसरा सत्र :

विषय - 'सामाजिक गीतों का प्रशिक्षण’
दिनेश प्रियमन - यह एक ऐसा अवसर है जब हम सहज संवाद बना सकेंगे और साझा कर नया प्रयोग कर सकेंगे। जहां तक सामाजिक गीतों का सवाल है – आगे जब भी अवसर मिले, हमलोग अपने-अपने क्षेत्रों के जनगीतों के साथ मिलते रहेंगे। यहां 15 प्रांतों से साथी हैं। भारत की ज्यादातर भाषाओं- बोलियों के साथी यहां हैं। ऐसा दुर्लभ अवसर नहीं मिलता। यह अवसर साहित्य-कविता की गीतात्मकता/गेयता को समझने का है जो भारत की तमाम भाषाओं में विधमान है। भारत की बहुभाषीय गेयता को समझने का यह अवसर है। यह कुछ गीतों के वादन-गायन का ही अकेला मामला नहीं है।
            साहित्य जीवन का समाज के प्रति एक सरोकार हैं। जितनी भी सांस्कृतिक गतिविधियां है, उसमें हर चीज शामिल है,विज्ञान, प्रकृति और वे वर्ग भी, जिनसे हम जुड़े या नहीं जुड़े हैं। जीवन के जितने रंग हैं, उन सभी को हम उसमें समेट लेते हैं। गीत मजदूर, किसान, श्रमिक, मेहनतकश, आदिवासी की भावनाओं से जुड़ते हैं। समाज के तमाम वर्गों की भावनाओं-आकांक्षाओं के स्वर उनमें जुड़ते हैं। आजादी के आंदोलन में 1857 से आजादी तक और आजादी के बाद तमाम आंदोलनों में गीतों की अपार संख्या है, वे केवल शब्द-धुन नहीं, जीवन की भावनाएं हैं।
''जब तक अपने स्वप्न रहेंगे, स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे... गीत के बोल के साथ अपना वक्तव्य को विराम दिया।
नसीर अहमद - '' मैं हंसने-हंसाने के लिए कविता नहीं लिखता”
                          '' प्यार का एक दीपक जलाएं तो अच्छा” आदि कविताएं सुनाई |
इसके बाद खुला सत्र हुआ जिसमें सभी साथियों ने अपने-अपने अनुभव रखे।
महिपाल (बीकानेर, राजस्थान) - समतामूलक समाज बनाने में हमारा कदम क्या है ? राजस्थान में आपके  उपनाम को जानना लोगों को जरूरी है वहाँ पूछा जाता है -आपका नाम- महिपाल....., आगे क्या क्या? हमने कुछ कोशिश की थी लेकिन लोगों में जाति तोड़ने की हिम्मत नहीं हो पार्इ। फिर भी थोड़ी कोशिश की हाशिए पर पड़े लोगों को साथ लाने की। आप 5-10 साल जिस चीज को मेहनत से खड़ी करते हो, उसे साम्प्रदायिक लोग एक झटके में तोड़ देते हैं।
मणिमाला जी - पंकज जी ने एक पत्र शिविर के लिए भेजा है। ''अंतिम जन” पत्रिका हम लोगों ने शुरू की थी। इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। इसकी सदस्यता ज्यादा से ज्यादा लोग लें, जुड़ें और लिखें। मौके का इस्तेमाल करें। कॉन्फ्रेंस से तो समाज नहीं बदलता, लेकिन वह अवसर जरुर देता है।
इनामुल - सरहदी गांधी,गांधी के विचारों को लेकर उस समाज में गए जहां लोग हमेशा हथियार लेकर तैयार रहते थे और अहिंसा के विचार को मजबूत किया। गांधी जी के चार मुददा इन पर काम करके समाज में बदलाव लाया जा सकता हैं-1. कौमी एकता (communal harmony), 2. सबके लिए शिक्षा(education for all), 3. आर्थिक सशक्तीकरण(economic empowerment), 4. मदिरा निषेध।
समता, जीवन संघर्ष की लड़ार्इ को divert करने का काम राजनीतिक संगठन कर रहे हैं| आज कल हिन्दू-मुसलमान द्वारा अपने धर्म को गाली देने का trend हो गया है। सभी धार्मिक विचार धाराओं को लेकर चलना होगा। एक दूसरे के बारे में समझने की कोशिश नहीं करेंगे, तो समता समाज नहीं बनेगा।
कुमार दिलीप – हम लोगों के लिए तीन प्रश्न है। 1. हम क्या करें? 2. क्यों करें? 3. किसके लिए करें?
इसके उत्तर अपने आप खोजने की जरूरत है, भले अनुभवी हमारा मार्ग दर्शन करें लेकिन खुद खोजना होगा । यदि आप खोज सकते हैं तो काम करने में दिक्कत नहीं होगी। जो भी सज्जन समाज में काम कर रहे हैं, ऐसे लोगों को समेटने की जरूरत है। हम संख्या पर नहीं जाते हैं, ध्येय रहता है कि समतामूलक समाज बनाने की परिकल्पना हो। जिसे लोहिया ने सप्त-क्रांति, जयप्रकाश ने सम्पूर्ण क्रांति का नाम दिया।
हम अपने जीवन में कुछ बातों को मानते है -
1.         हम बदलाव का काम 'शांतिमय’ साधन अपनाकर करें।
2.         स्त्री-पुरुष का भेदभाव खत्म करना होगा, इसकी शुरुवात खुद से करनी होगी।
3.         जति-धर्म, सम्प्रदाय, अन्धविश्वास से उपर उठकर नये समाज की परिकल्पना करनी होगी। हमें मानव धर्म बनाने की जरूरत है।
4.         हम ऐसा चिन्ह, पहचान भी नहीं धारण करें, जिससे जाति-धर्म की पहचान से अलग होकर हम आगे बढ़ सकते हैं।
5.         जनता के सवालों पर उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं, जिसमें न सत्ता में जाने की कोशिश, न चुनावी राजनीति में, न जातिगत संगठन में जानें कि चेष्ठ हो।
6.         गांधी जी ने कहा कि निर्णय लेते समय समाज के आखिरी पायदान के सज्जन को याद करें |
 इतना सोच के काम करना है कि हमारी किसी बात से किसी सामने वाले को आघात नहीं पहुंचे। ऐसा कर सके तो बदलाव की दिशा में अवश्य बढ़ेगे।
अजमत - मैं यहां मिलने आया था- मिलेंगे, तो सीख भी लेंगे, कुछ काम भी कर लेंगे, हमारी संख्या बढ़नी भी चाहिए। यह संकल्प लेकर जाना चाहिए। शुरू में सर्वोदय के युवा संगठन से जुड़ा, गांधी को समझने की कोशिश में आज तक लगा हूं।
मोरेश्वर – मैंने होटल मैनेजमेंट करने के बाद नौकरी नहीं करने का फैसला किया। शुरू में गांव में 4-5 बजे के समय में पूरे गांव में सफार्इ करते थे। पहले हम शर्माते थे कि लोगों को मालूम न हो, फिर बाद में सब को पता चला तब 6-7 बजे के समय पर सफार्इ होने लगी, इस तरह 5 से 6 साल काम करने के बाद लोगों में सफार्इ की आदत पड़ी।
गांव में महिलाओं के लिए सण्डास नहीं बनाये जाते, इसका प्रबोधन करने की कोशिश की। बारिश के दौर में नीचे स्थिति घर में पानी भर जाता था। श्रमदान के जरिये,सम्भव हो तो घरों में सण्डास बनाने का कार्यक्रम किया। दूसरा कार्यक्रम नशाबंदी को लेकर किया गया। हमारे यहां दहेज की समस्या है- समानता की बात खुद से, परिवार से शुरू होती है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ सत्र का समापन किया गया।

शिविर का चौथा दिन - पहला सत्र के शुरू में दिनेश प्रियमन द्वारा जनगीत ''जनता नहीं है हिन्दुस्तान, जनता नहीं है पाकिस्तान...।
दीपेन्द्र अविनाश - ''हम तरुण है हिंद के... तथा चलो गीत गाओ, चलो गीत गाओ...।
अरविंद अंजुम - ''बोल अरी ओ धरती बोल... क्रांति गीतों के साथ सत्र का प्रारंभ किया गया।

विषय - ''विश्व की जन क्रान्तियाँ और इतिहास बोध”
प्रो. लाल बहादुर वर्मा क्रांतियो से हमे क्या सबक मिलता है? आज किसी भी बात के लिए विज्ञापन जगत क्रांति शब्द का इस्तेमाल कर लेता है। क्रांति का मर्म है कोर्इ बड़ा परिवर्तन। लेकिन पहले यह जान लूं कि आपकी क्रांति की क्या अवधारणा है? हरितक्रांति / खेतक्रांति की अपनी एक महत्ता थी लेकिन जो इनका ध्येय था उत्पादन का ,क्या वो मिला ?क्या जिन्हें हम क्रांति कहते हैं, वैसा वहां नहीं हुआ था ?क्या कमी रही यहाँ पे? क्या क्रांति का प्रभाव सकारात्मक रहा आगे के समय में ? इतिहास में झाँक के देखिये तो पता चलेगा की बहुत से दक्षिण पंथी क्रांति बंजर हो गयी। रूस में भी सोवियत यूनियन स्थापित हो गया लेकिन रूस की सम्मान से सिर उठाकर जीने वाली महिला वैश्यावृति के लिए मजबूर हुई । बंजर चीन में क्रांति के उत्तराधिकारी पूंजीवादी रास्ते पर चल रहे हैं। दुनिया की तमाम क्रांतियाँ अधुरी/असफल ही रही है। तो एक प्रश्न खड़ा होता है |
Failure of revolution is inevitable, then why revolution at all?
फ्रेंच क्रांति ने नारा दिया था-समता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व (Equality, Liberty , Fraternity) | मगर आज दुनिया में भाईचारा दीखता नहीं है |
क्रांति के पहले भी भर्इचारा था। वह क्रांति के बाद तो बढ़ नहीं पाया। क्या क्रांति असफल ही हो जाऐगी? हम इस निष्कर्ष अगर पर पहुँच जाएँ की क्रांति करना गैरजरूरी है तब हमारे दुश्मन, मानवता के शत्रु खुश हो जायेंगे क्यूंकि वे तो यही चाहते हैं कि दुनिया विकल्पहीन ही रहे |
उदाहरण के लिए - गांव में नीम के पेड़ के नीचे कोई pepsodant/colgate कर रहा है मगर उसके पास नीम का दंतमंजन करने का विकल्प नहीं है | वैसे ही चुनाव में A/B/C में किसी को चुन लें, लेकिन Dया Z नहीं आ पायेंगे। क्योंकि या तो वे खड़े ही नहीं हो पायेंगे या जीतेंगे नहीं। सत्ताधारी लोग चाहते हैं कि दुनिया विकल्पहीन हो जाए। एक प्रचलित कथन है अंग्रेजी में-There Is No Alternative-TINA Factor.
क्रांतियाँ असफल हो गर्इ लेकिन ये नर्इ क्रांति की पृष्ठ भूमि बनाकर असफल हुर्इ। मेरी किताब ''अधुरी क्रांतियो का इतिहास बोध”(Sense of History coming out of Incomplete Revolutions) में आप पढ़ सकते है। उस किताब का सार यही है की इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, रूस, चीन में क्रांतियाँ हुई मगर पूरी नहीं हो पायी। आज तो दुनिया में कोर्इ भी क्रांतिकारी व्यवस्था नहीं है, फिर भी दुनिया क्रांति की चाहत में जी रही है। अधुरी क्रांति का इतिहास बोध है कि क्रांति के माध्यम से बदलाव हो।
            बात शुरू करते है – उदाहरण के तौर पर गांधी जी क्रांतिकारी परिवर्तन के आकांक्षी थे। और अगर ऐसे आयोजन न हों, तो गांधी जी भुला दिये जाऐंगे। वह एक विचार थे, व्यक्ति थे, प्रशंसित हुए, फिर कुछ लोगों का गांधीवाद में निहित स्वार्थ बन गया। क्रांति करने वालों में कुछ निहित स्वार्थ होता है | वह चाहते है की क्रांति हमेशा बनी रहे| वैसे ही रखने में निहित हित पैदा होता है, व्यवस्था को वैसा ही बनाए रखने का| लेकिन दुनिया/समय तो बदलेगा ही ,इसी कारण वक्त और क्रांति करने वालों के बीच अन्तर्विरोध पैदा होगा। सही क्रांतिकारी चाहते हैं- सतत क्रांति होती रहे | कोर्इ भी क्रांति सफल होकर अगली क्रांति की पृष्ठ भूमि बना जाती है।
दुनिया में कभी भी समय रूका नहीं है, इसलिए इतिहास की विडम्बना है कि क्रांतिकारी ही प्रतिक्रियावादी हो जाते हैं। फ्रांस में क्रांतिकारियों ने उस क्रांति में परिवर्तन चाहने वालों लोगो का विरोध शुरु कर दिया। पर क्रांति की सफलता यह है कि वह जो परिवर्तन करती है, उसी में अगली क्रांति के बीज बो देती है।
अगर गांधी अपने विचारों को ज्यों का त्यों बनाये रहेंगे तो वह प्रतिक्रियावादी हो जायेंगे | गांधी एवम मार्क्स के विचार देश और काल के हिसाब से लगातार बदलने होंगे। अगर ऐसा न हुआ, तो समाज को लाभ नहीं नुकसान होगा।
गांधी के विचार एक औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ और मानव समाज में एकता लाने के लिए थे | मगर आजाद देश में वे कैसे लागू हों, 1947 के बाद गांधी के विचार उसी तरह लागू नहीं हो सकते जैसे पहले हुआ करते थे,अगर गांधीवादी लोग उन विचारों को ज्यो का त्यों लागू करेंगे तो वह विचार धार्मिक हो जाएंगे | अब जैसे कुरान शरीफ में जो लिखा है 8वी शताब्दी में वो वैसा ही लागू हो अभी के समय में | नानक ने 16वीं सदी में जो अपने समय के अच्छे विचार थे उन्हें ग्रंथ साहब में संकलित कर दिया पर जो नानक का सच्चा अनुयायी वो होगा जो आज के विचारों को भी शामिल करेगा। वैसे ही सच्चा मुस्लमान वो होगा जो देश-काल में जो परिवर्तन हुए है उस हिसाब से अपने विचारों में बदलाव लाये| भारत की क्रांति भी जो होगी वह अपनी अनोखी होगी। आज तमाम जगहों से विचार लेकर समाज को बदलने का विचार बनाएंगे तो वह क्रांतिकारी विचार होगा। क्रांतियो का स्वरूप बदलता रहा है।
मार्क्स और गांधी को ज्यो का त्यों मानना शॉर्टकट है,आज का इंसान सोचना नही चाहता है |अगर नेतृत्वकारी लोग केवल जनता को अपने विचारो पर चलाएंगे या केवल उनको अनुकरण कराएँगे तो उस जनता के लिए यह बहुत विध्वंसकारी हो जाएगा| क्रांतियाँ सिखाती है की स्थायी नेतृत्व नहीं होना चाहिए |विचार गतिशील नही है तो वह रूढ़ीवाद बन जाएगा । क्रांति असफल इसीलिए होती है कि वह किसी एक की मुटठी में आ जाती है | ऐसा कैसे हो सकता है कि हर व्यक्ति सोचे न क्यूंकि जनतंत्र में हर व्यक्ति नेता है, चिंतक है। वही तंत्र जनतंत्र है जो हर एक को चिंतन करने का मौका देता है। क्रांति की एक नर्इ अवधारण की जरूरत है। जिस समय में हम जी रहे है उस समय में दुनिया में जो-जो परिवर्तन हुए उनसे सबक लेकर परिवर्तन करेंगे।
मेरी यह धारणा है शिक्षा दी नहीं जा सकती, ली जाती है। सारे संस्थान शिक्षा देने के संस्थान हैं| अगर आप लेने को तैयार न हों या यह क्षमता ही न दी गर्इ हो, तो आप क्या लेंगे, क्या फायदा हुआ इतने संसाधनों का? अगर आपकी ग्रहणशीलता न बढ़े, तो सारी विधा बकवास है।
आपको विचारशील इंसान बने रहना पड़ेगा, चाहे आस्तिक हों, चाहे नास्तिक| यह आपकी अपनी अस्मिता का सवाल है। अपने दिमाग का इस्तेमाल करना होगा, अपने आप को गम्भीरता से लेना होगा। 75 बरस की उम्र में मैंने यह सीखा है। आप पहले अपने आप को जानें तो |शरीर को कितना लोग गम्भीरता से देखते हैं? बस चेहरे में ध्यान देते है । खुद को गम्भीरता से लेने के लिए दिमाग को गम्भीरता से लेना होगा। अपने को गम्भीरता से लेने में लोग तन का ख्याल रखते हैं, मन का नहीं। विचार ही तो आपको जवान रखेंगे |
मनुष्य एक ही साथ मनुष्य और समाज दोनों के रूप में जन्म लेते है। इनमें Dichotomy कोर्इ नहीं है। Dichotomy गलत है। हम कहते है -Man is a social animal ,अगर सामाजिक प्राणी है, तो क्या बाद में सामाजिक बनेगा। वह तो पैदार्इश से ही स्वतंत्र रहता है , वैसा रूसो ने कहा Man is Born Free| सामाजिकता के प्रभाव में ही हम पैदा हुए, भले ही वह असामाजिक दिखे। व्यक्ति के नितान्त व्यक्तिकगत आचार-विचार भी सामाजिक है। अगर हम प्रकृति को गम्भीरता से नहीं लेते, तो खुद को भी गम्भीरता से नहीं लेते। अगर आप जिम्मेवार व्यक्ति हैं, तो खुद को गम्भीरता से लें, तभी आप अपने संगठन व समाज को बेहतर बना पायेंगे। दुनिया एक आदमी के प्रयास तो नहीं बदलेगी, लेकिन खुद को बदलना अपनी एक स्वायतता है।
खुद को गम्भीरता से लेकर आप मनोवांछित क्रांति की दिशा में बढ़ सकते हैं, पर लायक तो बने। दुनिया के बड़े से बड़े विचारक माडल नहीं होते, अगर हम समाज को बदलना चाहते हैं, तो उसके लायक बनकर जाएं- इतिहास यही सिखाता है। सारे इतिहास का सबक यही है- दूध का जला हो तो छाछ फूंक-फूंक कर पीना है। अगर हम यह माने कि दादाजी की बात शब्दश: करनी है, तो हम मठो का निर्माण कर देते है। मार्क्स ने 19वीं शताब्दी के इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी के लिए कहा था- नौजवान होने की शर्त है अपने मन के विचारो का उपयोग करना। बड़े से बड़े व्यक्ति के अनुयायी नहीं, सहयोगी बने, सम्भव हो तो आगे जाएं। रोजगार पाने के लिए दुनिया को बदलों, युवा के पास अवसर ही अवसर। तब आप अपना काम भी करेंगे और दुनिया को भी बदलेंगे। जो अवसर मिला, उसे भरपूर मानें।
दिनेश प्रियमन - ''मुशिकलों भरा है रास्ता, रोशनी भी है लापता... गीत के साथ सत्र का समापन हुआ।
दूसरा सत्र - ''देश के सामने सामयिक चुनौतियां” 
ज्ञानेन्द्र कुमार - अभिव्यकित और आस्था विश्वास को पाने की आजादी (Freedom of Faith) किसी व्यकित को संविधान से मिला है- वह किसी विचार को माने न माने व्यक्तिगत आधिकार है, लेकिन वह दूसरे नागरीक के अधिकारों का हनन नहीं करेगा। हिंसा के प्रयोग का निषेध होगा।
            शिक्षा का बहुत महत्व है शिक्षा व्यवस्था में रूढि़यों का अन्धश्रधा का निषेध हो, यह नाजुक लेकिन जरूरी मुददा है। डा. नरेन्द्र दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को हत्या हुर्इ। जादू-टोना, अंधश्रधा के विरोध में 2005 से महाराष्ट्र विधान सभा से तो पारित हुआ, पर विधान परिषद में लंबित है। इन प्रथाओं के आधार पर व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है, तो इसपर देशव्यापी कड़ा कानून जरूरी है।
अगर गांधी, अम्बेडकर, महात्मा फूले 2013 में होते, तो वहीं नहीं ठहरे होते, जहां तब थे। पूना पैक्ट को अम्बेडकर ने स्वीकार किया और बाद में आलोचना की। समाज बदलाव की लम्बी प्रक्रिया को समझते हुए गांधी ने अपना अभियान चलाया। गांधी-अम्बेडकर के समन्वय को समाज जिस सीमा तक मान्य कर चुका है, वह गांधी की भूमिका के कारण है। विचार प्रवाह सतत होते रहना चाहिए- विज्ञान और विवके के आधारित।
प्रो. गोरा, अम्बेडकर, दाभोलकर के आगे हमें जाना है। शिक्षण व्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव करना है। ''निर्दलीय” लोकतंत्र की परिकल्पना की ओर जाना है। इस देश के जागरूक लोग मिलकर अपने उम्मीदवार तय करेंगे। जयप्रकाश नारायण व अन्य विचारकों ने 'दलविहीन’ जनतंत्र की बात की। उसी के तहत right to recall और right to reject की मांग हुर्इ है। इस संदर्भ में हमें विज्ञान-विवके सम्मत समाज गठन की दिशा में आगे बढने का उददेश्य लेना होगा।
प्रियदर्शी - सामाजिक कार्यकर्ता समाज विज्ञानी होता। बिहार एक अभागा प्रान्त है, जहां 87 प्रतिशत लोग गांव में रहते हैं। आधे बिहार में बाढ़ का असर होता है। बिहार में गंगा जितने पानी के साथ प्रवेश करती है, उससे 14 गुना पानी के साथ प. बंगाल में प्रवेश करती है, लेकिन बिहार के 60 प्रतिशत गांव असिंचित हैं। बिहार में जन संरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
जब दिल्ली में मेट्रो बनाने के लिए श्रीधरन जैसे इंजीनियर लाए जा सकते हैं, तो बिहार जैसे पिछड़ा इलाकों में ऐसा क्यां नहीं होता। बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, प. बंगाल, झाड़खण्ड की दरिद्रता को address करने वाली योजना होनी चाहिए।
दीपक रंजीत,सुशान्त,वारंग्ये वरुण विक्रम के धन्यवाद ज्ञापन के साथ शिविर का समापन किया गया।
   
- कुमार दिलीप

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