Friday 17 October 2014

चाण्डिल जलाश्य पर केज कल्चर


झारखण्ड के जनजाति बहुल क्षेत्रों में सरकार कि बहुप्रतिक्षीत एवं चर्चित सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना समेकित विहार के वक्त से ही सुर्खियों में रही है कारण: जमीन अधिग्रहण, मुआवजा एवं पुनर्वास बड़े पैमाने पर धांधली एवं लेट लतीफी। सरायकेला-खरसवाँ के मानभुम क्षेत्र के पहाडि़यों से घिरा यह मनोरम स्वच्छ वातावरण वाला कस्बा चाण्डिल अनुमण्डल है, यहाँ से पश्चिम बंगाल कि सीमाओं पर अर्थव्यवस्था कि कमान रहवासी ग्रामीण, सरल आदिवासीयों के इर्द-गिर्द घुमती है। चाण्डिल जलाशय के निर्माण तीन दशकों से ज्यादा समय मेें हुए बदलाव, विरोध, संघर्ष एवं पुनर्वास के प्रत्यक्ष भोगी यह साक्षी जनमानस है।                                          


चाण्डिल जलाशय झारखण्ड राज्य का सबसे बड़ा जलाशय है अनुमानित क्षेत्रफल 20 हजार हेक्टेयर एवं अथाह गहराई वाले समुंद्र स्वरुप ये जीवनदायी सुवर्णरेखा नदी पर बनाया पक्का बाँध है। इस जलाशय के बनने में 116 गाँवों से भी ज्यादा ग्राम इस परियोजना की भेंट चढ़ चुके हैं, पुर्वजों का घर, आँगन, खेत खलिहान, खेल का मैदान, आमराई, देवस्थल सब के सब देखते ही देखते जलमग्न हो गये है। बेरोजगार, लाचारी और बेइंतहा मजबुरी जीवन निर्वाह में कर्कश एवं कमीबस भौंहे खीचने पर मजबुर करती है,मजबूत कदकाठी वाले हथियार उठाये हुए है, लाचार कुपोषित बिमार जनमानस घुटन भरी जिंदगी जीनें को मजबूर है,करें भी तो क्या ’’विकास के नाम सरकार का फरमान’’ मना भी तो नहीं कर सकते हैं।
बहरहाल,
जीना है अपनों के लिए, मासूम बच्चों के लिए, बुढ़े बाप के लिए, बिमार माँ के लिए,जवान होती बहनों के सम्मान के लिए, इस उम्मीद के साथ कि नया सवेरा आयेगा और समय के साथ फिर पहले जैसा हो जायेगा, कोयल फिर से वही मधुर गीत गायेगी, गौरेया भी तिनका तिनका उठाकर मेरे आँगन में आयेगी। अनायास ही बरसात के दिनों में घर में घुसे पानी के साथ मछलियों को देखकर,पकड़कर चार पैसे का जुगाड़ लगाते ये विस्थापितों को बरबस ही मछुआरा बना दिया।
वर्ष 2005-2006 में मत्स्य निदेशक झारखण्ड सरकार ने इन विस्थापितों एवं अपार संसाधन कि उपलब्धता को दिव्य दृष्टिकोण से समझकर जलाशय में मछली पालन करके रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से अधिनस्थों को आदेश दिया कि प्रत्येक गाँव में ग्रामसभा करके लोगों को चिन्हीत करो एवं मत्स्य पालन प्रशिक्षण,राजस्व तालाब,मत्स्य बीज, जाल नौका जो संभव यथाशीघ्र उपलब्ध करायें साथ ही साथ सहकारिता में सहभागिता के आधर पर पहले विस्थापित मत्स्यलीवी स्वावलम्बी सहकारी समिति चाण्डिल का नवगठन किया गया। इन्हें आत्मर्निभर बनाने के प्रयास में विभिन्न योजनाओं को चाण्डिल जलाशय में प्रत्यक्षीत करवाया गया जिसमें केज मत्स्य पालन सर्वश्रेष्ठ तकनीक के रुप में समाज के सामने उभर कर आया है।
प्रयोगात्मक तौर पर प्रथम चरण में 176 टन मत्स्य संसाधन का उत्पादन कर रातों-रात सुर्खियों में आयी यह योजना रोजगार उन्मुखी संज्ञा को प्रत्यक्ष परिभाषित करती है।
केज कल्चर क्या है ?
यह मत्स्य पालन कि आधुनिक पद्धति है जो गहरे एवं बड़े तालाबों,बाँधों जलाशयों  एवं सरोवरों में स्थापित करके मत्स्यपालन कर निश्चित समय पर मत्स्य आहार देकर उत्पादन करने की श्रेष्ठ एवं सरल विधी है। जैसेः-पड़ोसी एशियाई राष्ट्रों यथाः वियतनाम, थाईलैंड, फिलींपिस,काम्बोडीयाँ,कोरिया एवं विकासशील राष्ट्रों, नार्वे, अमेरिका, तस्मानियाँ, अस्ट्रेलिया समेत अनेक राष्ट्रों में अपनाकर स्वच्छ मछली की उपलब्धता सुनिश्चित किया जा चुका है। भारत के कृषि मंत्रालय ने इस योजना को राष्ट्रभर में फैलाकर कुपोषण से छुटकारा पाने के उद्धेश्य से लागू किया है।
चाण्डिल जलाशय में केज कल्चर:
चाण्डिल जलाश्य पर केज कल्चर या मछली पालने वाला लोहे के पाइपों को जोड़कर उसमें खाली ड्रमों को बाँधकर तैरता पिंजरा जिसमें चारों तरफ से उचित गुणवŸाा वाला नायलाॅन जाल बाँधकर पिंजरा का निर्माण किया जाता है,जो इस प्रकार कि मछलियों को इसमें रखकर मत्स्य आहार देकर पालन करें कि 6-8 महिने तक भी संरचना मजबूत रहे एव मत्स्य संसाधन का प्रसंस्करण व शिकारमाही आसानी से कर सकें।
यह पिंजरा सतह पर तैरता प्रतित होता है एवं इसका आकार 96 घन मीटर आयतन होता है,इस प्रकार चार पिंजरों के आपस में जोड़कर श्रंखला बनायी जाती है,जिसे बैटरी कहा जाता है। इस प्रकार 96 घन मीटर आयतन का समतल पिंजरों में 5-8 हजार मत्स्य अँगुलिकाओं का पालन किया जाता है।


   
 1.(आयरन केज)



2.(माॅड्यूलर)


                           
तकनीकी मापदण्ड: 6ग4ग4 आकार के चार केजों कि बैटरी में वैज्ञानिक विधीनुसार मत्स्य पालन करने में 6 से 8 महीनों का समय लगता है एवं प्रति केज 3 से 5 टन मछली का उत्पाद करके एक बैटरी से 12-20 टन मत्स्य संसाधन उत्पादित हो जाता है जिसका बाजार में खुदरा भाव 12-20 लाख रूपये तक हो सकता है,इस प्रकार एक बड़ी रकम प्राप्त कर सकते है।
मछली कर रखरखाव: सर्वप्रथम उचित गुणवŸाा एवं उन्नत प्रजाति कि मछलियाँ यथा पंगास (स्वर्णरानी),तिलापिया,कतला,भिटकी,रूपचँदा,काॅमन कार्प आदि मछलियों को समान आकार एवं नियत मापदण्डों के आधार पर सुबह या शाम को सावधानी पूर्वक इन पिंजरों(केजों) में संचयित की जाती है। संक्रमण को रोकने हेतु पोटेशियम परमेंगनेन्ट एवं साधारण नमक के 20चचज घोल में 60 सेकेण्ड तक डूबाते है,जिससे रोगाणु एवं अन्य संक्रमणकारी कीटों का उन्मूलन संचीत मछलियों के शरीर से दूर करते है तत्पश्चात नियमित उचित गुणवŸाा का मत्स्य आहार संतुलित मात्रा में प्रत्येक दिन दिया जाता है। समय-समय पर मछलियों का अवलोकन किया जाता है एवं प्रति केजों का संकलन(डाटा) हेतु पंजी का संधारण कर यह निर्धारित किया जाता है कि कितना उत्पादन होगा,कितना मत्स्य आहार एवं अन्य पर व्यय हो रहा है।
प्रति माह के इस कार्य में मत्स्य पालन, वृद्धिदर एवं ैत्ः आदि का परिक्षण करने से व्यय में 30% तक कटौती की जा सकती है।


   सच ही: एक जलाशय के निर्माण से उत्पन्न विस्थापन एवं विरोधाभास के विपरित जिंदगी मत्स्य पालन कर आत्म निर्भर होने कि ओर उमंग एवं निश्चित्ता के साथ बढ़ती प्रतीत हो रही है,यहाँ यह कहा जाना गलत नही होगा कि एक जलाशय के निर्माण से जीवन बदल गया है। परिस्थिति के अनुकूल रहवासी विस्थापित जन मानस अनायास ही मछली पालन एवं उससे जुड़े व्यवसाय में मछुआरों की परिभाषा को प्रत्यक्षित कर रहे हैं। 


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